कर्नाटक के तटीय इलाकों के लिए विकसित की गई काजू की नई किस्म “भास्करा” ज्यादा उपज देने वाली और कीट-रोधी है। यह टी मच्छर कीट के मध्यम प्रकोप से बचती है, मध्यम आकार के दाने देती है और एक पेड़ से 10 किलो से ज्यादा उत्पादन करती है। ICAR-पुत्तूर द्वारा विकसित यह किस्म स्थानीय किसानों के लिए बेहतर और लाभदायक विकल्प मानी जा रही है।
कर्नाटक के तटीय इलाकों के काजू किसानों के लिए एक अच्छी खबर आई है। ICAR–डायरेक्टरेट ऑफ़ काजू रिसर्च, पुत्तूर ने “भास्करा” नाम की एक नई काजू किस्म विकसित की है, जो वहाँ की जलवायु और खेती की परिस्थितियों के लिए बेहद उपयुक्त मानी जा रही है। यह किस्म पहले से उपलब्ध NRCC Selection-2 की तुलना में ज्यादा उपज देती है, इसलिए किसानों की आमदनी बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा सकती है।
होगा कीटनाशकों पर कम खर्च
भास्करा किस्म की खास बात यह है कि यह टी मच्छर कीट (Tea Mosquito Bug) के मध्यम स्तर के प्रकोप से बच निकलती है, जो काजू फसलों को होने वाले नुकसान का एक बड़ा कारण होता है। इसकी वजह से किसानों को कीटनाशकों पर कम खर्च करना पड़ता है और फसल सुरक्षित रहती है।

विशेषता
इस किस्म के काजू के दाने मध्यम आकार के होते हैं, जिनका वजन लगभग 6–8 ग्राम तक होता है। इसका कर्नेल यानी अंदर का भाग करीब 2.2 ग्राम का होता है। उत्पादन की बात करें तो यह किस्म एक पेड़ से 10 किलोग्राम से भी ज्यादा उपज देने में सक्षम है, जो इसे और भी आकर्षक बनाती है।
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इन क्षेत्रों के लिए उपयोगी
भास्करा किस्म को खासतौर पर कर्नाटक के तटीय क्षेत्रों के लिए अनुशंसित किया गया है, जहाँ की मिट्टी और मौसम काजू के लिए बिल्कुल अनुकूल हैं। कुल मिलाकर, यह किस्म किसानों को अधिक उपज, बेहतर गुणवत्ता और कम नुकसान के साथ एक भरोसेमंद विकल्प प्रदान करती है।
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।