शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश)। उत्तर प्रदेश की नकदी फसल गन्ना की खेती से किसानों को बेहतर लाभ कैसे मिले, इसके लिए उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर के डायरेक्टर वी. के. शुक्ल ने किसानों को सुझाव दिये हैं। प्रदेश के किसानों को गन्ने की फसल में उकठा रोग और जड़ बेधक कीट के लक्षण और उपचार के उपाय बताएँ हैं। इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया है कि गन्ने की बुवाई से पहले किसान इन रोगों से फसल को बचाने के लिए क्या करें और क्या न करें। उन्होंने बताया है कि इन रोगों के कारण गन्ने की पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं।
आपको बता दें कि भारत में गन्ने का सबसे अधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। यहां 28.53 लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन पर गन्ने की खेती होती है, जिस पर 839 कुंटल प्रति हेक्टेयर गन्ने का उत्पादन होता है। यही वजह है कि देश में गन्ना उत्पादन में पहले स्थान पर उत्तर प्रदेश आता है।ये स्थान बना रहे इसके लिए ज़रूरी है कि किसान ये सुझाव अपनाकर अपने फसल को नष्ट होने से बचाएँ।
गन्ने की पत्तियों में पीलापन का कारण और लक्षण
राज्य में गन्ने की फसल की कई किस्मों जैसे को. 11015, को. 15027, को.3102, को. 8005, को. 0434 के पत्तियों में पीलापन देखने को मिल रहा है। इसके अलावा फसल में उकठा रोग और जड़ बेधक कीट के प्रकोप के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। इसके साथ ही जड़ बेधक का प्रकोप उकठा रोग से प्रभावित गन्नों के साथ हरे गन्ने में भी देखने को मिल रहा है।
उकठा रोग एक मृदा जनित रोग है जो फ़्यूजेरियम सैकेरी फफूँद से पनपता है। ज़्यादातर ऐसा देखने को मिलता है कि उकठा रोग और जड़ बेधक रोग के कारण पौधे की जड़ और तना की टिशूज़ खराब हो जाती हैं, जिससे पौधे को पोषक तत्व नहीं मिल पाता है और पत्तियाँ पीली होने के साथ मुरझाने लगती हैं।

गन्ने की फसल में रोग का कारण
गन्ने की फसल में इस तरह के रोग के कई कारण हैं जैसे की सामान्य से कम बारिश, मिट्टी में नमी की कमी, सूखा, लंबे समय तक उच्च तापमान है। इसके अलावा कुछ कुछ अंतराल पर कम बारिश का होना भी उकठा और जड़ बेधक कीट लगने का कारण है।
उकठा रोग(विल्ट) के पहचान और लक्षण
1- इस रोग के लक्षण लगभग फसल की बुवाई के पाँच महीने के बाद दिखाई देते हैं।
2- संक्रमित गन्ने की फसल में पत्तियों का रंग पीला और बदरंग हो जाते हैं। उसके बाद पौधे सूखने लगते हैं।
3-सबसे पहले लक्षण पत्तियों के ऊपरी हिस्से में दिखायी देता है फिर धीरे धीरे पत्तियाँ मुझाकर काली पद जाती हैं।
4-ज़्यादा पीलापन वाले गन्ने के तने को फाड़ने पर नीचे से जड़ और तने वाले हिस्से में गुलाबी या लाल रंग धारियाँ और धब्बे दिखाई देते हैं।
5- रोग प्रभावित गन्ने से को ए गंध नहीं आती है और तने में सिकुड़न दिखने लगता है।
उकठा रोग और जड़ बेधक कीट का ऐसे करें उपचार
1.खड़ी गन्ने की फसल में जड़ के पास सिस्टेमिक फफूँदनाशी थायोफ़ेनेट मिथायिल 70 डब्लू. पी का 1.3 गरम प्रति लीटर पानी ( 520 ग्राम + 400 लीटर पानी प्रति एकड़ ) या कार्बेंडाजिम 50 डब्लू. पी. का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी (800 ग्राम + 400 लीटर पानी प्रति एकड़ ) की दर से घोल बनाकर 15 से 20 दिनों के अंतराल पर दो बार ड्रेचिंग करें और प्रयोग के बाद हल्की सिंचाई कर दें।
2. जड़ों के पास मिट्टी में ब्लीचिंग पाउडर का प्रयोग ना करें।
3. जड़ बेधक के नियंत्रण के लिए पर्याप्त नमी होने पर फिप्रोनिल 0.3 जी 10 -12 किलोग्राम या क्लोरपाइरीफांस 20% ई. सी. 2 लीटर या क्लोरपाइरीफांस 50% ई. सी. 1 लीटर या इमिडक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 200 मिली. प्रति एकड़ की दर से 750 लीटर पानी के साथ मिलाकर ड्रेचिंग करें।
आगामी फसल में रोग से बचाव के लिए ये करें
1- सबसे ज़्यादा ज़रूरी ये है कि किसान स्वस्थ बीज की बुवाई करके शुरुआती संक्रमण से फसल को बचा सकते हैं।
2- रोग से प्रभावित खेतों में फसल चक्र के अन्तर्गत अन्य फसलों की जरूर बुवाई करें।
3-राज्य के किसान बताये गये रोग प्रतिरोधी किस्मों की ही बुवाई करें।
4-गन्ने के बीज के टुकड़ों को 0.1 प्रतिशत कार्बेंडाज़िम 50 डब्लू.पी. अथवा थायोफ़ेनेट 70 डब्लू.पी. तथा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. (0.5 मिली + 1 लीटर पानी) कीटनाशक के साथ पारम्परिक विधि द्वारा 10-30 मिनट तक शोधन या भिगोकर अवश्य बुवाई करें।
5- एक या दो आँख के टुकड़ों 0.1 प्रतिशत कार्बेंडाज़िम 50 डब्लू.पी. अथवा थायोफ़ेनेट मीथाईल 70 डब्लू.पी. के साथ सेट ट्रीटमेंट डिवाइस में 30 मिनट तक से उपचारित अवश्य करें।
6- उकठा रोग से बचाव के लिए मिट्टी में बोरेक्स (बोरिक एसिड) की 6 किलोग्राम तथा जिंक सल्फेट की 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग अवश्य करें।
7- मिट्टी की जैविक उपचार के लिए बुवाई के समय जैव -नियंत्रक ट्राइकोडर्मा हार्जियेनम को 4 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से 40-80 किलोग्राम कम्पोस्ट खाद के साथ मिलाकर खेत की तैयारी अथवा गन्ना बुवाई के समय नालियों में तथा ब्यांत व ग्रोथ अवस्था में अवश्य प्रयोग करें।
8- ट्राइकोडर्मा किसी अधिकृत स्रोत से ही प्राप्त करें और इसके वैधता तिथि का भी पध्यान रखें।
9- जड़ बेधक तथा अन्य कीट के नियंत्रण हेतु बुवाई के समय गन्ने के टुकड़ों पर प्रति एकड़ की दर से फिप्रोनिल 0.3 जी 8 किलोग्राम अथवा क्लोरोपैरिफ़ॉस 20 प्रतिशत ई.सी. 2 लीटर अथवा क्लोरोपैरिफ़ॉस 50 प्रतिशत ई.सी. 1 लीटर अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 200 मिली. अथवा बाईफ़ेंथरीन 10 ई.सी. का 400 मिली को 750 लीटर पानी के साथ मिलाकर ड्रेंचिंग करें।
10- एक निश्चित समय के बाद खेतों में आवश्यकतानुशार सिचाई करते रहें।
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।