Climate Change: बढ़ता तापमान और घटते संसाधन से कैसे निपटेगा भारत?

यूरोपीय संघ की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2025 पूरी दुनिया के लिए अब तक का दूसरा सबसे गर्म अप्रैल रहा।

पिछले एक दशक में पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन ने असर डाला है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत में सर्दियों के दिन घट रहे। गर्मियों के दिन बढ़ते जा रहे हैं। 2025 को ही ले लीजिए, वक्त से पहले ही गर्मी आ गई। फरवरी में तापमान औसत से ज्यादा रहा, और मार्च में भी तापमान औसत से ज्यादा ही रहने की आशंका है। कृषि जानकारों का मानना है कि, इस बार पाला जरूरत से ज्यादा कम पड़ने और वक्त से पहले आई गर्मी का असर गेहूं के उत्पादन पर पड़ सकता है।

जलवायु परिवर्तन का असर सिर्फ खेती-किसानी पर ही नहीं पड़ रहा है। प्राकृतिक आपदाएं लगातार बढ़ रही हैं। तपती रेत पर कभी जरूरत से ज्यादा बारिश हो जा रही, तो वहीं पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। पर्यावरण में हुए इस बदलाव का असर ना सिर्फ हमारी अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचा रहा है, बल्कि लोगों की सेहत पर इसका विपरीत असर पड़ रहा है।

क्यों हो रहा जलवायु परिवर्तन?

जलवायु परिवर्तन का अर्थ है, पृथ्वी की जलवायु में हो रहे दीर्घकालिक बदलाव, जो मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों और प्राकृतिक प्रक्रियाओं के कारण होते हैं। जलवायु परिवर्तन प्रमुखता से ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन की वजह से होता है, जो मानवीय गतिविधियों और कुछ प्राकृतिक कारकों का परिणाम है। जब हम कोयला, पेट्रोल, डीजल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों को जलाते हैं, तो बड़ी तादाद में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄) और नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) जैसी ग्रीन हाउस गैसें वायुमंडल में पहुंचती हैं। ये गैसें सूर्य की ऊष्मा को अवशोषित कर लेती हैं, और उसे अंतरिक्ष में वापस जाने से रोकती हैं, जिससे पृथ्वी का तापमान धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। इसे ग्रीन हाउस प्रभाव कहा जाता है। इसके अलावा, वनों की कटाई (डीफॉरेस्टेशन) भी जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा कारण है। पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके वायुमंडल को संतुलित रखते हैं, लेकिन जब जंगलों को काटा जाता है, तो यह संतुलन बिगड़ जाता है और वायुमंडल में CO₂ की मात्रा बढ़ जाती है।

औद्योगीकरण, शहरीकरण और परिवहन के बढ़ते उपयोग से भी प्रदूषण बढ़ रहा है, जिससे वातावरण में अधिक गर्मी जमा हो रही है। खेती में रासायनिक खादों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से भी मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है, जो जलवायु परिवर्तन को तेज करता है।

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भारत पर जलवायु परिवर्तन पर असर

भारत के बड़े भू-भाग में कृषि आज भी मौनसून पर निर्भर है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से मौनसून का पैटर्न काफी बदल गया है। जिसका असर हमारे यहां खेती पर पड़ रहा है। इसके साथ ही बढ़ता तापमान भी कई क्षेत्रों में बेहतर उत्पादन पर असर डाल रहा है। University of Delaware की एक स्टडी के मुताबिक 2022 में भारत को GDP का 8 फीसदी नुकसान सिर्फ क्लाइमेट चेंज की वजह से हुआ। The Asian Development Bank का अनुमान है कि, 2070 तक भारत को GDP का 24.7 % नुकसान अकेले जलवायु परिवर्तन की वजह से हो सकता है।

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत की योजनाएं

जलावयु परिवर्तन धीरे-धीरे विकराल रूप लेता जा रहा है। इसे सभी वाकिफ है। सरकार भी इसे निपटने के लिए कई बड़े कदम उठा रही है। अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना, कोयले पर निर्भरता कम करना, और हरित तकनीकों को अपनाना इस दिशा में जरूरी कदम हैं। भारत ने 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है।

आप कैसे इस बदलाव के भागीदार बन सकते हैं?

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जितना जरूरी सरकार का इस दिशा में कदम उठाना है, उतना ही जरूरी समाज की भागीदारी भी है। व्यक्तिगत स्तर पर भी हम जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपनी भूमिका निभा सकते हैं। कम ऊर्जा की खपत, पानी के बेहतर इस्तेमाल, प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल और सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता देने जैसी छोटी-छोटी कोशिशों से बड़ा बदलाव आ सकता है।

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