सेब यूं तो पूरे भारत में खाया जाने वाला फल है लेकिन देश मे महज तीन राज्य ही ऐसे हैं जहाँ देश भर का 90 प्रतिशत से ज़्यादा सेब पैदा होता है. जम्मू कश्मीर की इसमें हिस्सेदारी 70 परसेंट है. फिर आता है हिमाचल प्रदेश और फिर उत्तराखंड. हम और आप इसे इन राज्यों के लिए प्रकृति का वरदान कह सकते हैं लेकिन प्रकृति वरदान यूं नहीं देती. वरदान के साथ ढेरों शर्तें और मुश्किलें भी आती हैं.और इन मुश्किलों से पार पाना केवल तकनीक के बूते ही सम्भव है. हिमाचल प्रदेश के शिमला से 40 किलोमीटर दूर एक गांव करियाल में रह रहे अजय ठाकुर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.
इस वक्त जब क्लाइमेट चेंज और उपजाऊ ज़मीनों में देश के हर हिस्से में उत्पादन पर भयंकर प्रभाव डाला है, अजय ने इन बदली परिस्थितियों को कभी भी अपने राह की बाधा नहीं बनने दिया. अजय ने हाई डेन्सिटी फार्मिंग का रास्ता चुना. उन्होंने सेब की कई किस्मों पर नए सिरे से काम शुरू कर दिया.ताकि वो विदेश की सेब वैराइटी के मुकाबिल खड़े हो सकें.
अजय ने न्यूज पोटली से बातचीत में बताया कि किस तरह से उन्होंने अपनी खेती को बूस्ट करने के लिए दोबारा से मेहनत की. उन्होंने बीज जर्मनी से मंगाए और कम जमीन में ज्यादा पैदावार कैसे हो इस बाबत सोचना शुरू किया. आज हाई डेंसीटी फ़ार्मिंग उनके इस बागवानी की पहली विशेषता है.
लेकिन अजय की मुश्किलें इतनी ही नहीं थीं. जिस बर्फबारी को देखने और उसमें ख़ुद को सराबोर करने मैदानी इलाकों के लोग शिमला जाया करते हैं,वही बर्फबारी एक बार फिर उनके लिए सवाल बनी, सवाल ये कि ओलों से फसलों को कैसे बचाया जाए. इसका जवाब था, एन्टी हिल नेट. उन्होंने इसके जरिये अपनी इस मुश्किल से भी पार पा लिया.
खेती की वो ज़रूरत जिससे किसानों का तबका आज भी जूझ रहा है. वह है सिंचाई. वो कहते हैं कि जब प्रकृति ने साथ छोड़ा तो उन्हें भी पुराने तरीके को छोड़कर सिंचाई के लिए नया रास्ता चुनना पड़ा. अजय ने ड्रिप इरिगेशन का चुनाव किया. बहुत कम लोग जानते हैं कि वह पहाड़ जिनसे निकल कर पानी मैदानी इलाकों में आता है उनके लिए भी पानी एक मुश्किल विषय बन सकता है. अजय के साथ भी वही हुआ लेकिन उन्होंने ड्रिप इरिगेशन के सहारे कम पानी में बेहतर खेती- बागवानी के अपने सपने को साकार किया.
आज वह अपने इलाके के सफलतम किसानों में से एक हैं. उनका कहना है कि सेब के एक पौधे से वो दो हज़ार से 2500 रुपए कमा रहे हैं और साल में उनकी आय 60 से 70 लाख़ तक हो जाती है. इस तरह अजय ग्रेजुएट अजय पुश्तैनी खेती कर के पर्याप्त खुश हैं.
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