हरियाणा: गेहूं की बालियों में क्यों नहीं बने दाने?, जानिए क्या बोले किसान और एक्सपर्ट

फसल हरी भरी थी, बालियां भी आईं लेकिन हरियाणा के कुरुक्षेत्र के कुछ किसानों के खेत में बालियों ने दाने नहीं बने। किसानों के मुताबिक खराबी बीज थी वहीं एक्सपर्ट और वैज्ञानिक बुवाई के समय और मौसम की वजह मान रहे। जानिए पूरा मामला

कुरुक्षेत्र (हरियाणा)। “मारे खेत में बालियां अच्छी थीं, लेकिन दाने 2 से 3 ही निकल रहे। बालियां निकलने से पहले सबकुछ ठीक था लेकिन अब सबकुछ बर्बाद हो गया। 17 एकड़ गेहूं था।” गेहूं की खाली बाली दिखाते हुए कुरुक्षेत्र के ठोल गांव में रहने वाले नरेश सांगवान कहते हैं।

इसी गांव के किसान गुलजार सिंह बताते हैं, कहते हैं, “14 एकड़ में गेहूं की बुवाई की थी। फसल में बालियां बनकर पक गईं लेकिन दाने बने ही नहीं। जबकि दूसरे किसानों की फसल एक दम अच्छी है। जमीन ठेके पर ली थी,एकड़ में लागत लगभग 80 हजार रुपए के करीब आई थी । हमारा 10 लाख से 12 लाख रुपये का नुकसान हो गया। हमें मुआवजा चाहिए।”

वीडियो में समझिए पूरा मामला

प्रदेश में करीब 24 लाख हेक्टेयर था रबका

हरियाणा देश के फूड बाउल में शामिल हैं। हरियाणा में गेहूं की उपज का बड़ा हिस्सा राष्ट्रीय खाद्य सुऱक्षा के तहत सरकारी खरीद में जाता है। प्रदेश में करीब 23.99 लाख हेक्टेयर में गेहूं की फसल थी, जिससे 121 लाख टन उत्पादन अनुमानित था। अंग्रेजी अखबार द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक 2022-23 में कुरुक्षेत्र में गेहूं की खेती का क्षेत्रफल 1.03 लाख हेक्टेयर था और गेहूं की औसत उपज 41.70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी। लेकिन इस बार अनूकुल मौसम में ये उपज बढ़ सकती है।

किसान बाले कंपनी के बीज में थी गड़बड़ी

पककर तैयार फसल की बालियों में दाना न बनने का मुद्दा गर्मा गया है। किसानों के मुताबिक ऐसा कई और गांवों में भी हुआ है। किसानों का कहना है ये सब गड़बड़ी बीज की है।

गुलजार सिंह कहते हैं, प्रभात कंपनी का डब्ल्यूएच 1270 बीज लाकर 10 नवंबर को बुआई की थी, मामला बीज का ही है। किसानों की शिकायत पर करनाल में स्थित गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम ने मौके पर जाकर जांच की है। गेहूं की इस प्रजाति को डब्ल्यूएच 1270 को हरियाणा के हिसार में स्थित चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के विकसित की है।

करनाल स्थित भारतीय गेहूं एवं जौ नुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया, “हमने जब सभी पहलुओं पर अध्ययन किया तो पाया कि कुछ किसानों ने देर से या समय से बोई जाने वाली किस्मों की बुवाई समय से पहले कर दी, जिससे जनवरी के पहले सप्ताह में उनमें हेडिंग आ गई और ठंड़ के साथ वो कंसाइड कर गया, लेकिन ये समस्या सीमित क्षेत्रों में है, कुछ किसानों ने इसकी शिकायत की है।’

हिसार विश्वविद्यालय में गेहूं विशेषज्ञ डॉ ओ पी बिश्नोई ने न्यूज पोटली को फोन पर बताया, ” इसके फिजिकल कारण 2 हो सकते हैं। पहला-गेती किस्मों की बुवाई 25 अक्टूबर से नवम्बर के पहले सप्ताह में की जानी चाहिए लेकिन कुछ किसानों ने 15 अक्टूबर को ही कर दी। ज्यादा अगेती बिजाई करने से हुआ ये जो बालियां सामान्य 90 से 95 दिनों में निकलती हैं वो 60 से 65 दिन में निकल गईं।”

डॉ. बिश्नोई आगे कहते हैं, “दिसंबर के तीसरे सप्ताह में दिन और रात का तापमान लगभग 3 डिग्री अधिक था। ऐसे में धुंध के कारण जनवरी के महीने में पॉलीनेशन की क्रिया बाधित हुई। बाद में जो बालियां निकली उसमें किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं थी।”

हालांकि किसानों का कहना है उन्होंने 10-15 नवंबर के बीच ही गेहूं की बुवाई थी। गेहूं के कुछ जानकार इसे मौसम का असर भी बता रहे हैं।

नरेश सांगवान कहते हैं, “ऐसा लग रहा है इस बार हमें अपना पेट भरने के लिए रिश्तेदारों से गेहूं लेना पड़ेगा। पिछली बार जब फसल लगाई थी तो उत्पादन अच्छा हुआ था लेकिन इस बार दाना ही नहीं बना। कम्पनी ने हमारे साथ धोखा किया है हमें गलत बीज दिये। ऐसा पहले कभी नही हुआ कि फसल में दाने ना बने हो। ये पहली बार हुआ है। कम्पनी वालों से हमने शिकायत की तो झाकने तक नही आये। एक एकड़ में 70 से 80 हजार रूपये की लागत आती है। अबकी 12 से 14 लाख का नुकसान हो जायेगा।”

न्यूज पोटली ने इस संबंध में हरियाणा में संबंधित अधिकारियों से भी बात की और मुद्दा समझने की कोशिश की। प्रभात सीड के निदेशक रितेश (फोन पर इतना ही बताया) ने न्यूज पोटली को फोन पर बताया
“ये समस्या जलवायु परिवर्तन के चलते आई है, हमने किसानों को असली बीज बेचा है, ये समस्या किसी एक कम्पनी के बीज में नहीं है, किसी एक किस्म में नहीं है।’

गुलजार आगे बताते हैं”हमारे परिवार में 6 लोग हैं । हम कृषि पर ही निर्भर हैं। मंडी से मैंने गेहूं लगाने के लिए चार लाख रुपये लिए थे। पैदावार नहीं होगी इस बार चुका भी नहीं पायेंगे । कर्ज के साथ-साथ ब्याज भी बढ़ जायेगा।”
मायूसी से भरे शांति नगर गांव के किसान करन सिंह (50 वर्ष) ने 6 एकड़ में गेहूं बोया था वो कहते हैं, बाकी गेहूं अच्छा है जिसमें 1270 बोया था उसक ही बालियां खाली हैं। हमें मुआवजा चाहिए अब सरकार दे या कंपनी, ऐसी ही घाटनाओं से परेशान होकर जिंमीदार आत्महत्या कर लेता है।”

पूरी फसल बर्बाद हो गई है।अबकी बार हमने गेहूं की किस्म डब्ल्यूएच 1270 की 17 एकड़ मेंबुवाई की थी। समय से खाद डाली, पानी लगाया, दवाई का छिड़काव भी किया फिर भी दाने नही बने। ये बीज प्रभात कम्पनी के थे।”
कुरुक्षेत्र जिले के ठोल गांव के रहने वाले नरेश सांगवान सांगवान बताते हैं।

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक2022-23 में जिले में गेहूं की खेती का क्षेत्रफल 1.03 लाख हेक्टेयर था और गेहूं की औसत उपज 41.70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी

ठोल गांव रहने वाले किसान गुलजार सिंह बताते हैं “मने 10 नवंबर को डब्ल्यूएच 1270 बीज की 14 एकड़ क्षेत्रफल में बुवाई की थी। फसल में बालियां बनकर पक गई लेकिन दाने बने ही नही। जमीन ठेके पर ली थी,एकड़ में लागत लगभग 80 हजार रुपये के करीब आई थी । हमारा 10 से 12 लाख रुपये का नुकसान हो गया है।”

हिसार स्थित चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के गेहूं विशेषज्ञ डॉ ओ पी बिश्नोई ने न्यूज पोटली को फोन पर बताया इसके फिजिकल कारण दो हो सकते हैं। पहला-गेती किस्मों की बुवाई 25 अक्टूबर से नवम्बर के पहले सप्ताह में की जानी चाहिए लेकिन कुछ किसानों ने 15 नवम्बर को ही करदी। ज्यादा अगेती बिजाई करने से हुआ ये जो बालियां सामान्य 90 से 95 दिनों में निकलती हैं वो 60 से 65 दिन में निकल गई। दिसम्बर के तीसरे सप्ताह में दिन और रात का तापमान लगभग 3 डिग्री अधिक था। ऐसे धुंध के कारण जनवरी के महीने में पॉलीनेशन की क्रिया बाधित हुई। बाद में जो बालियां निकली उसमें किसी प्रकार की कोई समस्या नही थी।

दूसरा- कई किसानों ने खरपतवारनाशी दवाई का छिड़काव बिजाई के 60 से 70 दिन में डाली कुछ किसानों नें 75 से 80 दिनों पर डाली ऐसे में पौधों में पॉलीनेशन ठीक नही हुआ और पौधों में बाझपन आ गया जिसके चलते दाने नही बने। खरपतवारनाशी दवाई का छिड़काव पहले पानी के बाद 30 से 35 दिन पर डालनी चाहिए।

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