सरसों का नाम तो आप ने सुन ही लिया होगा। भारत में बड़े पैमाने पर खाने में सरसों के तेल का इस्तेमाल होता है, इसलिए खेती किसानी के अलावा खाने वाले, पर्यवारण प्रेमियों के अलावा कई और वर्गों के बीच इन दिनों सारी चर्चा इसी के इर्दगिर्द है।
तो क्या है GM सरसों और इसकी इतनी चर्चा आखिर हो क्यों रही है। सरकार और वैज्ञानिकों का एक वर्ग इसके फायदे गिना रहा तो उन लोगों की तादाद भी कम नहीं जो इसके विरोध में अपनी आवाज़ को बुलंद किए हुए हैं। एक-एक करके आपको सब कुछ बताएंगे 5 मिनट के इस वीडियो को देखने के बाद GM सरसों को लेकर आपके मन में जो भी शंकाएं हैं वो सभी दूर हो जाएंगी।
जीएम मतलब जेनेटिकली मॉडिफाइड। नाम से तो आपको ये मालूम ही चल गया होगा कि कहीं ना कहीं ये एक नई तरह की किस्म है, जिसे तैयार करने के लिए कुछ अलग से किया गया है। और डिटेल में बात करें तो पौधों की दो अलग-अलग किस्मों को मिलाकर संकर या हाइब्रिड वैरायटी बनाई जाती है। ऐसी क्रॉसिंग से मिलने वाली फर्स्ट जेनरेशन हाइब्रिड वैरायटी की उपज मूल किस्मों से ज्यादा होने का चांस रहता है। दिल्ली यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स के वैज्ञानिकों ने जेनेटिक मॉडिफिकेशन के जरिए सरसों की हाइब्रिड वैरायटी तैयार की है, इसका नाम रखा गया है DMH-11 (Hybrid Mustard)। उन्होंने इसके लिए सरसों की भारतीय किस्म वरुणा की क्रॉसिंग पूर्वी यूरोप की किस्म अर्ली हीरा– 2 से कराई। डीएमएच-11 मिट्टी के जीवाणुओं से प्राप्त ऐसे जीन का उपयोग करता है जो सरसों को एक स्व-परागण करने वाला पौधा बनाता है, जिसे अन्य किस्मों के साथ संकरित करके संकर किस्मों का उत्पादन करना संभव किया जा सकता है।
बताया जा रहा है कि सीमित दायरे में किए गए फील्ड ट्रायल में DMH-11 की उपज वरुणा से 28 फीसदी ज्यादा पाई गई। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत काम करने वाली आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों के बीज तैयार करने और इसकी बुआई से जुड़े परीक्षण करने की इजाजत दे दी है। इस परीक्षण में ये देखा जाएगा कि GM सरसों की वजह से मधुमक्खियों और उन दूसरे कीट-पतंगों को कोई नुकसान तो नहीं होगा, जो पॉलिनेशन में मदद करते हैं। ये इजाजत इस मायने में अहम है कि इससे भारत में तैयार की गई पहली ट्रांसजेनिक हाइब्रिड मस्टर्ड यानी जीएम मस्टर्ड की खेती का रास्ता खुल सकता है।
बस यहीं से इसके फायदे और नुकसान को लेकर बहस बहुत तेज़ हो गई है। तो सबसे पहले इसके फायदे गिनाने वालों की बात कर लेते हैं। फिर विरोध करने वालों का तर्क जानेंगे।
जीएम के पक्षकार लोगों का तर्क जानिए
पक्ष में लोगों का कहना है कि आनुवंशिक रूप से संशोधित यानि जेनेटिकली मोडिफाइड बीजों से उपज ज्यादा मिलती है, इसका मतलब है कि उतनी ही ज़मीन में किसान अब काफी अधिक फसल पैदा कर सकता है। विशिष्ट परिस्थितियों या जलवायु के लिए जेनेटिकली मोडिफाइड बीजों का उत्पादन भी किया जा सकता है। जैसे कि सूखा प्रतिरोधी बीजों का उपयोग कम पानी वाले जगहों पर किया जा सकता है ताकि फसल का विकास सुनिश्चित किया जा सके। संसद टीवी में इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान ये बात बताई गई कि भारत में करीब 70 फीसदी खाद्य तेल आयात किया जाता है। जिसकी लागत करीब एक लाख करोड़ बताई गई है। तिलहन में आत्मनिर्भरता के लिए देश में तिलहन मिशन भी चलाया जा रहा है।
डेटा की बात करें तो भारत हर साल सिर्फ 8.5-9 मिलियन टन खाद्य तेल का उत्पादन करता है, जबकि 14-14.5 मिलियन टन आयात करता है जिसमें 31 मार्च, 2022 को खत्म हुए वित्तीय वर्ष में 18.99 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा खर्चा किया गया। और ये तो आप जानते ही हैं कि हम ज्यादातर जो भी आयात करते हैं उसका लेनदेन डॉलर में करते हैं। ऐसे में सरकार और पक्षकारों का मानना हा कि GM सरसों भारत को तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही विदेशी मुद्रा बचाने में भी सहायक होगी।
अब उन लोगों का भी तर्क समझिए जो इसके खिलाफ हैं और विरोध की आवाज़ को बुलंद किए हुए हैं।
जीएम का विरोध क्यों है?
वैसे तो विरोध कई स्तर पर है लेकिन दो खेमे इसका मुखरता से विरोध कर रहे हैं। एक तो पर्यावरण से जुड़े संगठन हैं और दूसरा खेमा स्वदेशी का है। जिनमें आरएसएस के स्वदेशी जागरण मंच प्रमुख है। विरोध की पहली वजह है जीएम मस्टर्ड में थर्ड ‘बार’ जीन की मौजूदगी। इसके चलते जीएम मस्टर्ड के पौधों पर ग्लूफोसिनेट अमोनियम का असर नहीं होता। इस रसायन का छिड़काव खर-पतवार को नष्ट करने में होता है। विरोध करने वालों का कहना है कि इस केमिकल का इस्तेमाल होगा तो निराई यानी खर-पतवार हटाने में इंसानों की जरूरत घट जाएगी, केमिकल हर्बिसाइड्स का इस्तेमाल बढ़ेगा और मजदूरों के लिए काम के मौके घट जाएंगे।
दलील ये भी है कि पर्यावरण मंत्रालय की कमेटी ने हाइब्रिड सीड तैयार करने में हर्बिसाइड के इस्तेमाल की इजाजत दी है और उसने कहा है कि हाइब्रिड फसलों की खेती में किसी भी सूरत में इस हर्बिसाइड का इस्तेमाल न किया जाए। लेकिन सवाल फिर यह उठता है कि खेती के दौरान इस हर्बिसाइड का उपयोग नहीं होगा, इसकी गारंटी कौन लेगा? अगर इस हर्बिसाइड का अंधाधुंध उपयोग होने लगा तो पौधों की कई किस्मों को नुकसान हो सकता है। इसके अलावा विरोध करने वालों का एक तर्क ये भी है कि जब देश में पहले ऐसी किस्में हैं जो ज्यादा उत्पादन देती हैं तो जीएम सरसों की जरुरत क्यों है।
अब बारी है विरोध के दूसरे पहलू की। दूसरी चिंता यह है कि GM सरसों के चलते मधुमक्खियों पर बुरा असर पड़ेगा, उनकी आबादी घट सकती है। कीट-पतंगों से परागण एक नैसर्गिंक प्रक्रिया है, जो प्रकृति के साथ चलती है। मधुमक्खियों के शहद बनाने में सरसों के फूल बड़ा रोल निभाते हैं। ये फूल परागण में मदद करने वाले दूसरे कीट-पतंगों के लिए भी बड़े काम के होते हैं।
उम्मीद है पूरा वीडियो देखने के बाद GM सरसों पर चल रही बहस को सही दिशा में समझ पाएंगे। लेकिन ये पूरा वीडियो देखने के बाद एक सवाल आपके मन में आ सकता है कि आखिर आगे की राह क्या होगा। दरअसल सुरक्षा प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिये कठोर निगरानी की ज़रूरत है, और अवैध GM फसलों के प्रसार को रोकने के लिये प्रवर्तन को गंभीरता से लिया जाना चाहिये। और इसका मूल्यांकन स्वतंत्र पर्यावरणविदों द्वारा किया जाना चाहिये। क्योंकि किसान हालात और स्वास्थ्य पर GM फसलों के दीर्घकालिक प्रभाव का आकंलन नहीं कर सकते हैं। क्योंकि इसके लिए जो साइंटेफिक अप्रोच चाहिए वो अभी एक्का दुक्का किसानों के पास है। जीएम सरसों से पहले साल 2009 में यूपीए सरकार ने बीटी बैंगन की अनुमति दी थी लेकिन भारी विरोध के बाद उसे वापस लेना पड़ा था।