लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं इन दिनों खेतों में लहलहा रही है। लेकिन इस मौसम में कई इलाकों में खरतवार गेहूं किसानों को काफी परेशान करते हैं। गेहूं एक घनी बुवाई वाली फसल है इसलिए कई बार न सिर्फ खरपतवार पहचानने में परेशानी होती है। बल्कि उनका नियंत्रण भी आसान नहीं होता है। कृषि वैज्ञानिक और सह प्राध्यापक, कृषि विभाग, IIAST, इंट्रीगल विश्वविद्लाय लखनऊ, डॉ अमरीष यादव, किसान के लिए जानकारी साझा की है।
आप भी जानिए किस तरफ के खरपतवार नियंत्रण के लिए क्या उपाय आजमाने हैं।
इन कीटनाशकों का छिड़काव कर बचा सकते हैं फसल
1-गेहूं की फसल को संकरी पत्ती वाले खरपतवारों से बचाने के लिए क्लोडिनाफॉप-15 डब्ल्यूपी 160 ग्राम प्रति एकड़ या पिनोक्साडेन-5 ईसी 40 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।
2.चौड़ी पत्ते वाले खरपतवारों के लिए 24-डी, 500 एमएल प्रति एकड़ या फिर मेटसल्फ्यूरान 20 डब्ल्यूपी 8 ग्राम प्रति एकड़ या कारफेंट्राजोन 40 डीएफ 20 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।
3.यदि खेत में संकरी व चौड़ी पत्ती वाले दोनों तरह के खरपतवार हैं तो पहली सिंचाई से पहले या सिंचाई के 10-15 दिन बाद 120-150 लीटर पानी में सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 डब्ल्यूजी 13.5 ग्राम प्रति एकड़ या सल्फोसल्फ्यूरॉन में मेटसल्फ्यूरॉन मिलाकर 16 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 120-150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

4.बहु शॉकनाशी प्रतिरोधी फालारिस माइनर (कनकी व गुल्ली डंडा) के नियंत्रण के लिए बुवाई के तीन दिन बाद पाइरोक्सासल्फोन 85 डब्ल्यूजी 60 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। इसको किसान पहली सिंचाई के 10 से 15 दिन बाद 120-150 लीटर पानी में मिलाकर क्लोडिनाफऑप व मेट्रिबुजिन का क्रमश: 12 व 42 प्रतिशत डब्ल्यूपी का मिश्रण तैयार कर 200 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
रतुआ रोग का प्रबंधन
तापमान में ज्यादा फेरबदल होने या फिर नमी होने पर फसल में रतुआ रोग लगने की आशंका बढ़ जाती है। आर्द्र मौसम रतुआ अनुकूल है तो इसको ध्यान में रखते हुए धारीदार रतुआ (पीला रतुआ) का नियमित निरीक्षण करते रहें। यदि कहीं दिखे तो इसका संक्रमण रोकने के लिए प्रोपीकोनाजोल 25 ईसी, 0.1 प्रतिशत या टेबुकोनॉडोल 50 प्रतिशत और ट्राइफ्लोक्सोक्सीस्ट्रोबिन 25 प्रतिशत डब्ल्यूजी, 0.06 प्रतिशत का एक स्प्रे करना चाहिए।
एक लीटर पानी में 1 मिली कवकनाशी (फंगीसाइड) मिलाएं
एक लीटर पानी में एक मिलीलीटर कवकनाशी ही मिलाना चाहिए। इस प्रकार एक एकड़ गेहूं की फसल में 200 मिली कवकनाशी को 200 लीटर पानी में ही मिलाया जाना चाहिए।
गुलाबी बेधक के प्रकोप से ऐसे करें बचाव
धान, मक्का, कपास, गन्ना उत्पादन वाले क्षेत्रों में गुलाबी बेधक का हमला हो सकता है। इससे गेहूं की फसल में मुख्यत: इल्लियों का प्रकोप बढ़ जाता है। जिसमे कैटपिलर तने में लग जाता है ऐसे में ऊतकों को नष्ट कर देता है। प्रारंभिक अवस्था में तने में डेड हार्ट बन जाते हैं। पौधा का रंग पीला पड़ जाता है। इन्हें आसानी से उखाड़ा जा सकता है। निचली शिराओं पर गुलाबी इल्लियां देखी जा सकती है। संक्रमित कल्लों को हाथ से चुनने और नष्ट करने से छेदक का हमला कम हो जाता है। यदि प्रकोप अधिक हो तो 1000 मिली लीटर क्विनालफास 25 ईसी को 500 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर मिलाकर छिड़काव करें।
नोट- किसान साथी अपने खेत और मौसम को देखते हुए स्थानीय कृषि विभाग या केवीके के साथ संपर्क कर सकते है।