किसान गन्ने की फसल को चोटी बेधक और गुरुदास पुर बेधक कीट के प्रकोप से ऐसे बचायें, कृषि विभाग ने दी सलाह 



गन्ने की खेती देश के कई राज्यों में की जाती है। उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक गन्ने का उत्पादन होता है। महाराष्ट्र गन्ना उत्पादन में दूसरे नंबर पर आता है। यह दोनों ही राज्य ऐसे हैं जहां गन्ने का सबसे अधिक उत्पादन होता है और यहीं पर सबसे अधिक चीनी मिलें भी हैं। इन दोनों के अलावा कर्नाटक, हरियाणा, बिहार, तमिलनाडु, गुजरात, पंजाब, आंध्रप्रदेश और उत्तराखंड में भी गन्ने की खेती की जाती है।
इनमें सबसे अधिक यूपी में गन्ना किसान है। इसलिए उत्तर प्रदेश के कृषि विभाग ने किसानों के लिए गाने में लगने वाले रोग और उसके रोक थाम के लिए एडवाइज़री जारी की है।
गन्ने की फसल को बहुत से कीटों व रोगों का प्रकोप होता है। यदि समय पर इसकी रोकथाम नहीं की जाए तो पूरी की पूरी फसल ही चौपट हो जाती है और किसान को बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ता है।

कृषि विभाग ने किसानों को इस मौसम में गन्ने की फसल में चोटी बेधक कीट और गुरुदास पुर बेधक कीट के प्रकोप से कैसे फसल को बचाया जाये इसकी जानकारी दी है। 
यह कीट गन्ने के कल्ले को ही नष्ट कर देता है जिससे गन्ने की पूरी फसल खराब हो जाती है और किसान को बहुत हानि होती है। ऐसे में यदि शुरुआती अवस्था में ही इसकी रोकथाम कर दी जाए तो फसल को नुकसान से बचाया जा सकता है।



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चोटी बेधक कीट के लक्षण
चोटी बेधक कीट को आमतौर पर कंसुवा, कन्फ्ररहा, गोफ का सूखना, सुंडी का लगना आदि नामों से जाना जाता है। इस किट का प्रकोप सबसे पहले गन्ने की फसल की पत्तियों पर होता है। प्रारंभिक अवस्था में इस रोग से प्रभावित गन्ने की फसल की पत्तियों पर छर्रे जैसे कई चित्र दिखाई देते हैं, इससे पत्तियों का विकास अवरूद्ध हो जाता है। प्रभावित पौधे की अंतिम अवस्था में गन्ने की बढ़वार रूक जाती है जिससे फसल को नुकसान होता है। 




गुरुदास पुर बेधक कीट के लक्षण
इसी तरह से गुरुदास पुर बेधक कीट तीसरी चौथी पोरी में घुसती है और घुमावदार काटते हुए ऊपर की और बढ़ती है, जिससे पौधे की पत्तियाँ सूख जाती हैं।गाने को खींचने पर गन्ना कटाव वाले साठन से टूट जाता है।इसकी कीट एक पौधे से दूसरे पौधे में जाती है, जिसके प्रक्प से फसल बुरी तरह प्रभावित होता है।




रोकथाम के लिए ये करें 

इन दोनों के नियंत्रण के लिए कृषि विभाग ने किसानों को सलाह दी है ।


1.ट्राइकोग्राम किलोनिस परजीवी 10 कार्ड प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिन के अंतराल पर शाम के समय प्रयोग करें।


2.या फिर रासायनिक नियंत्रण के लिए कार्बोफ़्यूरान 3% दानेदार 30 KG प्रति हेक्टेयर की दर से समुचित नामी की दशा में जड़ों पर छिड़काव करें।
3.या फिर क्लोर पाइरीफास 20%EC 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर को 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

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