तकनीक से तरक्की पार्ट 2- धान गेहूं की जगह बागवानी की नई फसलें और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से कमाई कर रहे यदुनंदन

yadaunandan singh feeling confident after using all agri technoolgy in his field

लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)। 90 के दशक की बात है, ज्यादातर पढ़े लिखे युवा शहरों की तरफ भागे जा रहे थे लेकिन एक शख्स ने उल्टी रेस लगा दी, घर वाले भी चाहते थे वो नौकरी कर ले, कोई दुकान ही खोल ले। लेकिन उसे अपनी मिट्टी, पुरखों की जमीन से जुड़े रहना था, पोस्ट ग्रेजुएट यदुनंदन सिंह ने खेती को करियर बनाने का फैसला किया। खेती लेकिन कुछ हटके, कुछ नई फसलें, कुछ नई तकनीक के साथ।
“खेती में तकनीक का फायदा ये है कि पिछले साल हमने एक एकड़ गन्ने के खेत में लहसुन बोया था। लहसुन बोने के बाद खरपतवार रोकने के लिए पराली की मल्चिंग कर दी। सिंचाई के लिए ड्रिप लाइन बिछा दी। मुझे उससे 22 कुंटल लहसुन मिला, जो 2 लाख 5 हजार का बिका बाकी गन्ने से जो एक से डेढ़ मिल जाएं।” अपनी बाग में बैठे किसान यदुनंदन सिंह खुशी-खुशी बताते हैं।


यदुनंदन सिंह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 175 किलोमीटर दूर लखीमपुर खीरी जिले के बांकेगंज में रहते हैं। यहां पर उनकी 4 हेक्टेयर जमीन है, जिस पर वो परवल, जिमीकंद, गेंदा, केला, धनिया, मूली, स्ट्रॉबेरी और आलू की खेती करते हैं। उनके पास लीची का बाग भी है। इसके साथ ही वो दुनिया की सबसे महंगी लकड़ी अगरवुड के भी 100 पेड़ लगाए हुए हैं।
यदुनंदन सिंह ने अपनी खेती में ऐसा सिस्टम बनाया हुआ है कि उन्हें सालभर किसी न किसी फसल से पैसे आते रहें। यदुनंदन सिंह अपनी खेती कहानी बताते हैं, “देखिए खेती को बिजनेस की तरह करने की जरुरत है, एक ही फसल पूरे खेत में बो देंगे तो एक बार पैसा आएगा लेकिन बाकी समय इंतजार करना होगा, पैसा नहीं होगा तो खेत में मन भी नहीं लगेगा।”


अपनी बात को आगे बढ़ाते वो कहते हैं, “इसलिए हमने अपनी खेती को बांट रखा है। एक हिस्से में 30-50 दिन की फसल होती है, तो किसी हिस्से में 3 महीने वाली, किसी खेत में 6 महीने तो किसी में 1 साल से लेकर डेढ़ साल तक वाली। यहां कि हमने जो अगर वुड और सागौन लगाया वो 10 साल में तैयार होंग। ये सब हमें समय- पर पैसे देते रहेंगे।”
अगस्त-सितंबर में उनके खेतों में परवाल और मूली निकल रही थी, तो गेंदे की रोपई हो गई थी, अक्टूबर में स्ट्रॉबेरी की रोपाई होगी। जिमीकंद मार्च में खुदेगा, जो स्टोर करके कई महीनों तक बिकेगा।
यदुनंदन कहते हैं, “किसान को अगर पैसा कमाना है तो उसकी एक आंख खेत और दूसरी मंडी पर होनी चाहिए, किसान को ये देखना चाहिए मंडी में किसी चीज की डिमांड है और उसी पर फोकस रखना चाहिए।”
13-14 वर्षों से पूरी खेती ड्रिप इरिगेशन से।

पूरा वीडियो यहां देख सकते हैं…

कभी खेती, तो कभी मार्केट ने कई बार यदुनंदन को धोखा दिया लेकिन वो जमे रहे, नए-नए प्रयोग करते रहे। नई-नई फसलें उगाते रहे। तकनीक पसंद यदुनंदन के फार्म पर खेती को आसान बनाने वाले कई उपकरण हैं। वो पिछले 13-14 वर्षों से माइक्रो इरीगेशन यानि ड्रिप इरीगेशन और स्प्रिंकलर तकनीक अपना रहे हैं। बूंद-बूंद सिंचाई विधि का उपयोग वो तब से कर रहे हैं जब सरकारी सब्सिडी महज 50 फीसदी थी, जबकि अब तो सरकारें 80-90 फीसदी सब्सिडी दे रही हैं।
यदुनंदन बताते हैं, मैं एक बार किसानों के साथ जलगांव में जैन हिल्स गया था, वहां हमने बूंद-बूंद सिंचाई सिस्टम और खेती की दूसरी तकनीक देखी, फिर सोचा कुछ ऐसा अपने यहां भी करते हैं।”
वो बताते हैं, “ड्रिप इरिगेशन का फायदा ये हुआ कि कम डीजल, कम बिजली, कम पानी में परे खेत की एक साथ सिंचाई हो जाती हैं। पूरी फसल एक साथ तैयार होती है। मैं अपनी पूरी खेती ड्रिप करता हूं। कुछ फसलों में स्प्रिंकलर भी लगाया हुआ है। प्रदेश के उद्यान विभाग से उस पर सब्सिडी मिली थी। हमारे खरपतावर निकालने के लिए मिनी ट्रैक्टर भी और स्प्रे करने वाला पंप भी है। इन सब पर हमें सरकारी सब्सिडी मिली है।”
जो पहले पागल समझते थे वो खेती सीखने आते हैं


अपने पुराने दिनों को याद करते हुए यदुनंदन कहते हैं, आज तो हमारे खेत पर कई जिलों के किसान देखने आते हैं लेकिन पहले जब हमने खेती शुरु की 1991-92 में 100 केले के पेड़ लगाए, तो यहां के लोग बोले महाराष्ट्र की ये फसल लखीमपुर की तराई में कैसे होगी। हमने फसल पैदा कि लेकिन बेचने में मुश्किलें आई क्योंकि शुरुआत में क्वालिटी वो नहीं थी, हालांकि बाद में सब सही होगा गया अब तो हमारा माल लखनऊ, सीतापुर, बरेली, लखीमपुर समेत कई मंडियों में जाता है।”
मौसम ने कई बार तोड़ा हौसला
“पिछले कुछ वर्षों में मौसम में बड़ा बदलाव आ गया है। 4-5 वर्षों से आंधी तूफान के चलते केले का बहुत नुकसान हुआ, लाखों रुपए की फसल कुछ ही मिनट में बर्बाद हो गई। तो हमने केले का रकबा कम करके कंद वाली फसल लगाने की सोची, इसलिए जिमीकंद की खेती की।” यदुनंदन खेती के जोखिम बताते हैं।
वो आगे जोड़ते हैं, “इसी तरह लंबी अविधि की फसल सतावर लगाते थे, उसमें भी 15-20 लाख का नुकसान हुआ, जिसके बाद हमने से बंद कर दिया।”

यदुनंदन सिंह की जिमीकंद की खेती देखिए…

नई-नई फसलों और भ्रमण का शौक
उत्तर प्रदेश के जिस इलाके में यदुनंदन सिंह रहते हैं वहां किसान ज्यादातर गन्ना और कुछ केले की खेती करते हैं। उनकी देखा देखी कई किसान सब्जियों की खेती करने लगे हैं। अपनी बाग में लगे अनानास का फल दिखाते हुए यदुनंदन कहते हैं, “मुझे घूमने का बहुत शौक है, नई जगह जाता हूं तो नई फसलें देखने को मिलती है, ये आनानास मैं मेघालय से लेकर आया। जबकि कालीमिर्च का पौधा केरल से मंगाया है। और ये शाही लीची के पेड़ बिहार से मंगाए हैं। पिछले दिनों में पुणे गया जहां देखा कि पॉली हाउस वाले गुलाब की खेती खुले में हो रही है तो मैंने वो किस्म यहां लगाने का फैसला किया है।”
राज्यपाल से लेकर नरेंद्र मोदी तक चुके हैं सम्मानित


यदुनंदन सिंह की गिनती जिले ही नहीं प्रदेश स्तर पर प्रयोगधर्मी किसानों में होती है। उन्हें कई पुरस्कार और अवॉर्ड मिल चुके हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के हाथों सम्मानित हुए हैं तो साल 2013 में वाइब्रेट गुजरात समिटि में मुख्यमंत्री रहे मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यदुनंदन सिंह को 51,000 रुपए की चेक देकर सम्मानित कर चुके हैं।
यदुनंदन कहते हैं, “हमने परंपरागत खेती में समय के अनुसार बदलाव, मंडी में डिमांड वाली फसलें उगाकर और सबसे बढ़कर तकनीक का इस्तेमाल कर तरक्की की है। ड्रिप इरिगेशन और खेती के छोटे बड़े उपकरण न होते तो बहुत मुश्किल होती। हर किसान को कम लागत और खेती में फायदे के लिए इन्हें अपनाना चाहिए।”


नोट- “तकनीक से तरक्की” सीरीज जैन इरिगेशन और न्यूज पोटली का साझा प्रयास है, जिसमें देश के अलग-अलग राज्य के प्रगतिशील किसानों की कहानियां आप देख रहे हैं। अगर आप भी खेती में कुछ खास कर रहे, और तकनीक से आपको फायदा हुआ है तो हमसे संपर्क करें।

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