यूपी: DSR से धान की खेती और ड्रिप से सिंचाई देख गदगद हुए नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक

सूरतगंज (बाराबंकी)। “डीएसआर विधि से धान की खेती और बूंद-बूंद सिंचाई में ही भविष्य है। धान की सीधी बुवाई से तैयार हो रही फसल देखकर लग रहा है कि कम पानी में भी अच्छी पैदावार होगी” नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रसार अधिकारी डॉ के. एम. सिंह यूपी के बाराबंकी जिले में डीएसआर विधि से धान का लहलहाता खेत देखकर कहा।

बाराबंकी के सूरतगंज ब्लॉक में टांडपुर गांव के प्रगतिशील किसान रामसांवले शुक्ला की जलवायु अनुकूल धान की खेती देखने के लिए किसानों, कृषि वैज्ञानिकों और अधिकारियों का तांता लगा है। रामसांवले शुक्ला ने इस बार धान की सीधी बिजाई यानि डीएसएसआर (Direct Seeded Rice) की थी और इसमें भी वो ड्रिप इरिगेशन सिस्टम से बूंद-बूंद सिंचाई कर रहे हैं। बृहस्पतिवार को किसान का खेत देखने आए नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रसार अधिकारी डॉ. के.एम सिंह. टरनेशनल प्लांट न्यूट्रीशन इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक और इफ़को के सलाहकार प्रो, के एन तिवारी, कृषि विज्ञान केंद्र हैदरगढ़ के इंचार्ज डॉ अश्वनी कुमार सिंह पहुंचे थे।

किसान रामसांवले शुक्ला ने इस बार करीब 10 एकड़ में धान की खेती की है, जिसमें से 1 एकड़ डीएसआर और बाकी परंपरागत रोपाई है। डीएसआर विधि से बोए धान में बालियां आ चुकी हैं, जबकि दूसरे खेतों में अभी धान कल्ला ही कर रहे हैं।आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रसार अधिकारी डॉ के. एम. सिंह ने कहा वो लंबे समय से डीएसआर पर काम कर रहे हैं और ये प्रमाणित तकनीक है। इस दौरान उन्होंने मौजूद किसानों से अपील की कि वे विश्वविद्यालय से जुड़कर अपनी खेती को उन्नत बनाएं।

मिट्टी की सेहत का ध्यान रखकर उगाएं फसल

इंटरनेशनल प्लांट न्यूट्रीशन इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक और इफ़को के सलाहकार प्रो, के एन तिवारी ने इस दौरान किसानों से मिट्टी की सेहत पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि इस खेत की सभी बालियाँ एक जैसी और स्वस्थ हैं क्योंकि फसल को संतुलित पोषण दिया गया है। प्रो. तिवारी ने किसानों को नैनो डीएपी और नैनो यूरिया की प्रयोग विधि भी बताई।

उन्नत विधियों से खेती देख खुश हुए वैज्ञानिक

डीएसआर से बुवाई और ड्रिप से सिंचाई से तैयार फसल को देखते वैज्ञानिक और कृषि अधिकारी। फोटो- न्यूज पोटली

फ़ार्म विजिट पर आए कृषि विज्ञान केंद्र हैदरगढ़ के इंचार्ज डॉ अश्वनी कुमार सिंह ने कहा कि किसानों को अगर खेती की लागत कम करनी है तो उन्नत विधियों से खेती करनी होगी। उन्होंने कहा कि धान की बिजाई का ये तरीका ऐसा है जिसे सरकार भी प्रोत्साहित कर रही है क्योंकि ये तरीका ना सिर्फ धान में लगने वाले पानी की मात्रा को कम करता है और पर्यावरण के लिए सही है बल्कि यह किसानों के लिए भी फायदेमंद है।

11 जून को मशीन से बोए गए धान में निकले हुए कल्ले। फोटो न्यूज पोटली

किसान राम सांवले को तकनीकी सपोर्ट दे रहे जैन इरिगेशन के सलाहकार डॉ. एके भारद्वाज ने कहा कि यूपी में ये उनका पहला प्रोजक्ट है लेकिन उससे पहले हरियाणा में वो पांच वर्षों में काम कर रहे हैं।
डॉ. भारद्वाज ने कहा, “11 जून को इस खेत की बुवाई की गई थी। अब देखने पर लगता है कि फसल बहुत शानदार है. जो भी आ रहा है, फसल की तारीफ कर रहा है। जलवायु परिवर्तन के जिम्मेदार ग्लोबल वार्मिंग में बड़ा योगदान धान की खेती से निकलने वाली मिथेन गैस की भी है। इसके लिए सबसे अच्छा विकल्प है धान की सीधी बिजाई, क्योंकि इसमें न नर्सरी लगानी होती है,न ही लेवा मारना होता और ना ही रोपाई के दौरान पानी भरने के लिए डीजल और लेबर लगता है। सीधी बिजाई में धान को सीधे खेतों में बोया जाता है। इससे पानी, लेबर, डीजल की बचत होती है और पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है।

डॉ. अशोक भारद्वाज, डॉ. केएम. सिंह को धान के बारे में जानकारी देते हुए।

उत्तर प्रदेश में यूपी सरकार के डब्ल्यूआरजी 2030 प्रगति प्रोजेक्ट के तहत किसानों को धान की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। कुछ दिनों पहले रामसांवले का खेत देखने विश्व बैंक की टीम भी पहुंची थी। विश्वबैंक के 2030 WRG की टेक्निकल कॉर्डिनेटर डॉ. अंजली फरानिश ने कहा, “मैं ये फार्म देखकर बहुत खुश हूं, एक तो खर-पतवार बिल्कुल नजर नहीं आ रहे हैं, दूसरा पौधे भी बहुत स्वस्थ हैं। कहीं पानी भी नहीं भरा है। किसान का खर्चा कम आया है। अगर यूपी में ये प्रयास फायदेमंद रहा और यूपी के किसान अगर ज्यादा से ज्यादा डीएसआर अपना लेते हैं तो सस्टेनेबल खेती की नई राह खुलेगी।”


सीधी बिजाई, ड्रिप से सिंचाई
किसान रामसांवले ने कहा कि जो परंपरागत खेती है उसमें धान में 50-60 दिन तक लगातार पानी भरना होता है। जबकि ड्रिप में बहुत कम पानी लगता है और हर दूसरे दिन करीब 2 घंटे ड्रिप चलानी होती है। अगर खर्च की बात करें तो रोपाई वाली धान की खेती में शुरुआती खर्च 10000 रुपए प्रति एकड़ का खर्च लगा है जबकि सीधी बिजाई का खर्च शुरुआती खर्च करीब 1 हजार रुपए आया है। अगर इस खेत में अच्छी पैदवार होती है तो अगले साल पूरे खेत में इसी विधि से बिजाई करेंगे। रामसांवले ने कहा कि पहले डीएसएस को लेकर डर था लेकिन फसल देखकर लग रहा है ये अच्छा तरीका है।


इस दौरान कौशल किशोर, पुष्पेन्द्र मिश्रा, रवींद्र वर्मा, नरेंद्र शुक्ला, शैलेंद्र, सुनील कश्यप, मुकुंद तिवारी, मिश्री गुप्ता, नन्हें, समेत 40 किसान मौजूद रहे।

डीएसआर विधि को लेकर टांडपुर समेत आसपास के गांवों में किसान उत्साहित हैं, उनका कहना है कि अगर इस किसान ये कहां पैदावार अच्छी हुई तो वो अगले साल डीएसआर से बुवाई करेंगे।

जैन इरिगेशन की किसान चौपाल के दौरान वैज्ञानिक, अधिकारी और किसान। फोटो- न्यूज पोटली

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