ICAR ने गेहूं की नई किस्म DBW 327 (करन शिवानी) विकसित की है, जो समय से पहले बोई जाने वाली सिंचित भूमि के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 7.5 टन प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देती है, मौसम की मार झेल सकती है और पोषक तत्वों से भरपूर है। किसानों के लिए यह उच्च उत्पादन और टिकाऊ खेती का बेहतर विकल्प है।
भारत के किसानों के लिए भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान (ICAR-IIWBR), करनाल ने गेहूं की एक नई किस्म विकसित की है — डीबीडब्ल्यू 327 (करन शिवानी)। यह किस्म न केवल अधिक पैदावार देने वाली है, बल्कि पोषण से भरपूर और मौसम के बदलावों में भी मजबूत साबित हो रही है।
किन इलाकों के लिए उपयुक्त
यह किस्म जल्दी बोई जाने वाली और सिंचित परिस्थितियों के लिए बनाई गई है। इसे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, और जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में उगाया जा सकता है।
इसकी खासियत क्या है?
डीबीडब्ल्यू 327 (करन शिवानी) की सबसे बड़ी ताकत है इसकी उच्च पैदावार — यह प्रति हेक्टेयर 7.5 टन से भी ज्यादा उत्पादन दे सकती है। इसके दाने मोटे और भारी होते हैं, जिनका वजन लगभग 1000 दानों पर 45 ग्राम से ज्यादा होता है।
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मौसम और पौष्टिकता दोनों में मजबूत
यह गेहूं की किस्म क्लाइमेट-रेज़िलिएंट है, यानी बदलते मौसम या सूखे जैसी परिस्थितियों में भी अच्छा प्रदर्शन करती है। इसके अलावा यह बायोफोर्टिफाइड है — मतलब इसमें पोषक तत्व ज्यादा हैं, जिससे अनाज की क्वालिटी और न्यूट्रिशन वैल्यू दोनों बढ़ जाती हैं।
किसानों के लिए क्यों खास
‘करन शिवानी’ गेहूं किस्म किसानों के लिए इसलिए फायदेमंद है क्योंकि यह कम जोखिम और ज्यादा उत्पादन देती है। चाहे मौसम में उतार-चढ़ाव हो या सिंचाई की चुनौती, यह किस्म स्थिर उपज सुनिश्चित करती है और बेहतर दाम वाली क्वालिटी भी देती है।
अगर आप उत्तर भारत में सिंचित खेती करते हैं और ज्यादा पैदावार के साथ पौष्टिक गेहूं की तलाश में हैं, तो डीबीडब्ल्यू 327 (करन शिवानी) आपके खेत के लिए एक बढ़िया विकल्प हो सकती है।
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।