किसानों की सबसे बड़ी जरूरत पर संकट: क्यों घट रही है यूरिया की आपूर्ति?

क्यों घट रही है यूरिया की आपूर्ति?

खरीफ सीजन में कई राज्यों में यूरिया की किल्लत है। ज्यादा बारिश से बढ़ा उपयोग, वैश्विक दाम और चीन का निर्यात प्रतिबंध इसकी वजह बने। केंद्र अतिरिक्त आवंटन का दावा कर रहा है, पर राज्यों को कमी महसूस हो रही है। किसान परेशान हैं और नैनो यूरिया को विकल्प मानने पर भी सवाल उठ रहे हैं।

देश के कई राज्यों में खरीफ फसलों की बुवाई और बढ़ती मांग के बीच यूरिया की किल्लत गहराती जा रही है। तेलंगाना के वारंगल जिले के राजापल्ली गांव में किसान आधी रात को सहकारी समिति के दफ्तर पहुंचे, सिर्फ इसलिए कि वहां 440 बोरी यूरिया की खेप आई थी। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और पंजाब में भी किसान लंबी कतारों में खड़े हैं या सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं।

यूरिया संकट के मुख्य कारण
बिज़नेस लाइन की एक रिपोर्ट के मुताबिक यूरिया संकट की तीन बड़ी वजहें हैं। इस साल अच्छी मानसूनी बारिश होने से किसानों ने जरूरत से ज्यादा यूरिया का इस्तेमाल किया, जिससे मांग अचानक बढ़ गई। दूसरी ओर, भू-राजनीतिक हालात के कारण वैश्विक बाजार में कीमतें बढ़ीं और आपूर्ति प्रभावित हुई। इसके साथ ही, चीन ने यूरिया के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसने भारत में संकट को और गहरा कर दिया।

केंद्र सरकार का आकलन

केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2025 तक यूरिया की आवश्यकता 39.67 लाख टन आंकी है, जो पिछले साल से लगभग 3 लाख टन अधिक है। लोकसभा में केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बताया कि जुलाई 2025 तक 115.91 लाख टन की मांग के मुकाबले 158.34 लाख टन यूरिया आवंटित किया गया।

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राज्यों की स्थिति
तेलंगाना: राज्य के कृषि मंत्री के अनुसार यूरिया की कमी दो लाख टन तक पहुंच गई है।
आंध्र प्रदेश: मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने बताया कि किसान प्रति हेक्टेयर 255 किलो यूरिया इस्तेमाल कर रहे हैं। सरकार ने कम उपयोग पर प्रति बोरी ₹800 प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की।
कर्नाटक: खरीफ में 2.5 लाख टन की कमी, रबी में 7.2 लाख टन की आवश्यकता।
महाराष्ट्र: कृषि मंत्री दत्तात्रेय भरने ने बताया कि अप्रैल-जुलाई 2025 में आवंटित 10.67 लाख टन में से सिर्फ 8.41 लाख टन ही किसानों तक पहुंचा।
केरल: बारिश के कारण फसलों को अधिक खुराक चाहिए, लेकिन यूरिया की उपलब्धता कम है।
पश्चिम बंगाल: यूरिया की कमी नहीं, लेकिन मिश्रित खाद (10:26:26) की आपूर्ति घट गई।
तमिलनाडु: मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने प्रधानमंत्री को आपूर्ति तुरंत करने के लिए पत्र लिखा।

नैनो यूरिया पर बहस
कई विशेषज्ञों और किसानों का मानना है कि नैनो यूरिया ग्रैन्युलर यूरिया का विकल्प नहीं है। खासकर चाय जैसी बहुवर्षीय फसलों में पारंपरिक यूरिया ही जड़ों तक पोषण पहुंचा सकता है।

आगे की चुनौती
संयुक्त राष्ट्र की FAO रिपोर्ट के अनुसार भारत में बढ़ी मांग से नाइट्रोजन उर्वरक की वैश्विक कीमतें और बढ़ गई हैं। कृषि वैज्ञानिकों का सुझाव है कि जिलेवार मिट्टी प्रोफाइल तैयार कर, प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में यूरिया की आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी, ताकि खरीफ और रबी दोनों मौसम में फसलें सुरक्षित रहें।

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Pooja Rai

पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।

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