तकनीकी रूप से उन्नत बीटी कॉटन (BT cotton) की एक नई किस्म को जल्द ही व्यावसायिक खेती के लिए अनुमति दी जा सकती है। जिससे भारतीय कपड़ा उद्योग को बड़े पैमाने पर मदद मिलेगी। इस बारे में कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) ने कहा कि इस क्षेत्र में श्रम समस्या को दूर करने के लिए स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के सदस्यों का बड़े पैमाने पर उपयोग करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
बीटी कपास एकमात्र आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसल है जिसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) द्वारा 2002 में व्यावसायिक खेती के लिए मंजूरी दी गई है। गिरिराज सिंह ने एक समाचार एजेंसी से बातचीत के दौरान बताया कि HT (हर्बिसाइड टॉलरेंस) बीटी (जिसे BG III भी कहा जाता है) कपास का परीक्षण चल रहा है। ICAR (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) द्वारा मूल्यांकन पूरा होने और आवश्यक मंजूरी मिलने के बाद इसकी व्यावसायिक खेती की अनुमति दी जा सकती है। ऐसी किस्म किसानों के लिए उत्पादन की लागत को कम कर सकती है साथ ही कपास की बुवाई के लिए बड़े क्षेत्र को बढ़ावा दे सकती है और कपड़ा उद्योग को मदद कर सकती है।
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भारत ने 2002 में बीटी (तकनीकी रूप से बोलगार्ड बीटी कॉटन या BG1 के रूप में जाना जाता है) की खेती को मंजूरी दी। बाद में दो-जीन बीटी कॉटन (बोलगार्ड II) को 2006 में व्यावसायिक खेती के लिए जारी किया गया। इसे देश में मुख्य रूप से बॉलवर्म को प्रबंधित करने और कीटनाशकों के उपयोग को कम करने के लिए फसल सुरक्षा तकनीक के रूप में पेश किया गया था। हालांकि समय के साथ देश के सभी कपास उगाने वाले क्षेत्रों में पिंक बॉलवर्म बीटी 2-जीन कपास का एक प्रमुख कीट बनकर उभरा है। हालांकि सरकार का दावा है कि कपास में पिंक बॉलवर्म प्रबंधन के लिए रणनीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन से कपास का उत्पादन 2006-07 में 226.3 लाख गांठ से बढ़कर 2022-23 में 343.5 लाख गांठ हो गया है। 2023-24 के लिए अनुमानित उत्पादन 320.50 लाख गांठ है।
सिंह ने कहा कि भारतीय वस्त्र और परिधान के बाजार के विकास के लिए कपास उत्पादन की उच्च और बेहतर गुणवत्ता महत्वपूर्ण होगी। अब तक इसका आकार लगभग 168 बिलियन डॉलर है और 10 प्रतिशत CAGR (चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) की उम्मीद के साथ, 2030 तक इसके 350 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। साथ ही भारत वस्त्र और परिधान का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। भारत कई कपड़ा श्रेणियों में शीर्ष पांच वैश्विक निर्यातकों में शुमार है जिसका निर्यात 100 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
श्रम के लिए स्वयं सहायता समूहों का उपयोग सिंह ने कहा कि इस तरह की संख्या के साथ कपड़ा क्षेत्र का विकास भी श्रम की उपलब्धता पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा, “देश भर में स्वयं सहायता समूहों के 10.2 करोड़ सदस्य सस्ते श्रम का अच्छा स्रोत हो सकते हैं और हम इसका पूरा उपयोग करने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही कई ब्रांड इन समूहों से श्रम प्राप्त कर रहे हैं।” इसके अलावा कई राज्य कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए पहल कर रहे हैं। सिंह ने कहा, “मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों ने श्रम सब्सिडी और बिजली सब्सिडी सहित उपाय किए हैं। फिर बिहार ने प्लग एंड प्ले का मॉडल अपनाया है।”
उन्होंने घरेलू विनिर्माण को बढ़ाने के लिए ‘हब एंड स्पोक’ मॉडल को अपनाने का आह्वान किया। मंत्रालय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानकीकृत पार्क बनाने के लिए एकीकृत कपड़ा पार्क (एसआईटीपी) योजना को पुनर्जीवित करने के लिए भी तैयार है। मंत्री ने बांग्लादेश से खतरे के सिद्धांत को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, “मेरी चुनौती बांग्लादेश नहीं है। मैं आने वाले समय में चीन से आगे निकलना चाहता हूं। बांग्लादेश में पानी और कच्चे माल के शुल्क बढ़ रहे हैं।”