मंदसौर से न्यूज पोटली के लिए अशोक परमार की रिपोर्ट
अगस्त का महीना शुरू हो चुका है और शुरू हो चुकी है मध्यप्रदेश के मंदसौर में एक विशेष किस्म के लहसुन की खेती. इसका नाम है ऊंटी लहसुन. इससे खाने में स्वाद का तड़का तो लगता ही है किसानों को आमदनी भी खूब होती है. एक तो ऊंटी लहसुन, दूसरा इस बार आसमान तक पहुंचे लहसुन के भाव से नए सीजन में गहमा-गहमी ज्यादा है. ऊंटी लहसुन की साल में दो बार खेती होती है लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों में. लहसुन की किस खास किस्म का नाम ऊंटी, तमिलनाडु के हिल स्टेशन ऊंटी के नाम पर पड़ा है.
मंदसौर जिले की दलौदा मंडी
मंदसौर इस खास किस्म के लहसुन का हब माना जाता है. मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में इस खरीफ सीजन में बुवाई के लिए इस लहसुन की मांग इतनी ज्यादा है कि बाजार वाले दिन मंडी में मेला लग जाता है. 2 महीने में 16 दिन इसकी मंडी लगती है और इस दौरान करीब 200 करोड़ के कारोबार का अनुमान है. तमिलनाडु से आने वाले इस लहसुन का इस्तेमाल इस सीजन में सिर्फ बीज के लिए होता है. जुलाई से सितंबर इसकी बुवाई होती है, जनवरी से मार्च तक खुदकर ये लहसुन फिर ऊंटी पहुंच जाता है.
बीज वाले इस उंटी लहसुन का रेट ज्यादा होने की कई वजहें हैं. इसकी मोटी कलियां, चमकदार दाना और कमजोर जमीन में भी बंपर पैदावार देने की इसकी क्षमता किसानों में इसे लोकप्रिय बनाती है. मध्य प्रदेश के मंदसौर, रतलाम, धार और नीमच में इसकी बड़े पैमाने पर खेती होती है.
मध्य प्रदेश के किसानों के मुताबिक एक एकड़ में करीब 4 क्विंटल बीज लगता है, जिससे औसतन 30-45 क्विंटल प्रति एकड़ का उत्पादन मिल जाता है. अगर रेट की बात करें तो पिछले सीजन में किसानों को 15 हजार से 40 हजार रुपए क्विंटल का भाव मिला है. बुवाई के लिए लहसुन लेने मंडी आए किसान गोपाल पाटीदार बताते हैं कि पहले वो देसी लहसुन बोते थे लेकिन लगातार बुवाई से उसकी पैदावार कम होने लगी थी. इसलिए अब वो और उनके जैसे हजारों किसान ऊंटी ही बोते हैं। गोपाल के मुताबिक देसी लहसुन में पहले एक बीघा में 10-12 क्विंटल होता था, लेकिन अब 7-8 क्विंटल ही होता है. ऊटी लहसुन एक बीघे में ढाई क्विंटल बीज से 10-12 क्विंटल का उत्पादन आसानी से हो जाता है.
ऊटी लहसुन का ये कारोबार केवल मध्यप्रदेश तक सिमटा हुआ नहीं है बल्कि यहाँ इस मंडी में राजस्थान गुजरात और महाराष्ट्र से किसान बीज खरीदने आते हैं.
मंदसौर की इस दलौदा कृषि उपज मंडी में जुलाई से सितंबर हर हफ्ते 2 दिन बाजार लगता है.इन दोनों निर्धारित दिनों पर (रविवार और बुधवार) औसतन 500 गाड़ियां आ रही हैं. ऊंटी लहसुन का कारोबार नीमच की जावेद और जावरा मंडी में होता है लेकिन मंदसौर की दलौदा मंडी सबसे आगे है.
मालवा रीजन के किसानों को पिछले 10-15 वर्षों ऊंटी लहसुन के रुप में शानदार कमाई वाला विकल्प मिला है. बहुत सारे किसान सोयाबीन की फसल को छोड़कर भी लहसुन लगा रहे हैं. किसानों की मानें तो हर साल तो नहीं लेकिन 3-4 साल में लहसुन का ऐसा रेट आता है जो अच्छी आमदनी देकर जाता है. किसानों में इसके बीजों के क्रेज का आलम आप यूं समझ सकते हैं कि महज 6 दिन में मंदसौर की इस मंडी में 75 करोड़ से ज्यादा का कारोबार हो चुका है और अभी आगे इसका दोगुना कारोबार होने की उम्मीद है.
मालवा से लेकर गुजरात, राजस्थान तक ऊंटी लहसुन की डिमांड की वजह माटी भी है. ऊंटी में पहाड़ी और लाल मिट्टी वाले खेत हैं, जिससे यहां पैदा होने वाला लहसुन भी हल्का गुलाबी और मटमौला हो जाता है, जबकि भारत में सफेद लहसुन ज्यादा पसंद किया जाता है. शायद इसीलिए मालवा की काली मिट्टी में तैयार इस लहसुन की डिमांड देश में ही नहीं विदेश तक है.
भारत में हर साल 3.1 मिलियन मीट्रिक टन लहसुन का उत्पादन हर साल होता है. प्रमुख उत्पादक राज्यों में मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल हैं. हिमाचल में भी कुल्लू और मंडी समेत कई इलाकों में बड़े पैमाने पर लहसुन की खेती होती है. दिन ब दिन चर्चित होते जा रहे ऊटी लहसुन का क्रेज किसानों में जिस तरह बढ़ रहा है, वह दिन दूर नहीं जब इसकी खेती देश के उन कोनों में भी होगी जहां के किसान अब तक देशी लहसुन के सहारे ही खेती की बागडोर सम्हाले हुए हैं.