कृषि मंत्रालय ने जारी किए उर्वरक संबंधी नए आदेश, टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देना और फसल उत्पादकता बढ़ाना लक्ष्य

कृषि मंत्रालय

कृषि मंत्रालय के उर्वरक संबंधी इस नए आदेश का मकसद बायोस्टिमुलेंट्स, माइक्रोबियल फॉर्मूलेशन और बायोकेमिकल उर्वरकों के लिए नए स्‍टैंडर्ड लागू करके फसल उत्पादकता और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देना है.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने फसल उत्पादकता को बढ़ाने और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने के नजरिये से एक अहम फैसला लिया है. मंत्रालय ने उर्वरक (अकार्बनिक, जैविक या मिश्रित) (नियंत्रण) आदेश, 1985 में एक बड़ा संशोधन लागू किया है. उर्वरक (अकार्बनिक, जैविक या मिश्रित) (नियंत्रण) चौथा संशोधन आदेश, 2025 के तौर पर जाना जाने वाला अपडेटेड ऑर्डर बायोस्टिमुलेंट्स, माइक्रोबियल फॉर्मूलेशन और बायोकेमिकल उर्वरकों के लिए विस्तृत नियमों के तहत है. 

कृषि मंत्रालय द्वारा जो परिर्वतन इनमें किए गए हैं उनमें सबसे अहम है ह्यूमिक एसिड, फुल्विक एसिड और सी-वीड्स (समुद्री शैवाल) बेस्‍ड बायोस्टिमुलेंट्स के लिए सटीक स्‍पेशिफिकेशंस को शामिल करना है. ये नए नियम कई फसलों के लिए स्वीकार्य कंपोजिशंस, इनग्रीडिएंट्स और डोज से जुड़ी गाइडलांइस को लेकर आना. उदाहरण के लिए ह्यूमिक एसिड 6 फीसदी (लिक्विड), इसमें लियोनार्डाइट से मिले कम से कम 6 प्रतिशत पोटेशियम ह्यूमेट होना चाहिए.

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टमाटर और मिर्च जैसी फसलों के लिए
ह्यूमिक-फुल्विक एसिड 76 प्रतिशत (पाउडर): इसमें डेक्सट्रोज मोनोहाइड्रेट जैसे स्टेबलाइजर्स के साथ-साथ ह्यूमिक और फुल्विक एसिड का बैलेंस्‍ड मिक्‍स होना चाहिए. मंत्रालय ने परिभाषित किया है कि टमाटर के लिए 1.25 लीटर/हेक्टेयर पर पत्तियों पर छिड़काव और मिर्च के लिए 30 किलोग्राम/हेक्टेयर पर इसका मिट्टी पर छिड़काव होना चाहिए. 

ककड़ी, धान और बैंगन जैसी फसलों के लिए
बदलाव के तहत एस्कोफिलम नोडोसम और कप्पाफाइकस अल्वारेजी जैसी प्रजातियों से सी-वीड्स अर्क के लिए भी स्‍टैंडर्ड तय कर दिए गए हैं. ये एल्गिनिक एसिड के स्तर, कार्बनिक कार्बन और पीएच की तरफ ध्‍यान दिलाते हैं. इन्हें ककड़ी, धान और बैंगन जैसी फसलों के लिए मंजूर किया जाता है जिसमें खास तौर पत्तियों और मिट्टी पर छिड़काव की दर होती है. 

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Pooja Rai

पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।

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