पंजाब में समय से 20 दिन पहले धान की बुआई के फैसले पर कृषि वैज्ञानिकों ने जताई चिंता, मान सरकार को लिखा पत्र

पंजाब सरकार

देशभर में गेहूं और दूसरी रबी फसलों की कटाई लगभग पूरी हो चुकी है। अब किसान धान की बुवाई की तैयारियों में जुट गए हैं. इसी बीच पंजाब सरकार धान की बुआई निर्धारित समय से 20 दिन पहले करने की अपनी योजना पर आगे बढ़ रही है, जिससे कृषि वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ गई है. वहीं, राज्य में भूजल की स्थिति पर नए रिपोर्ट से पता चला है कि पंजाब के सभी जिलों में भूजल स्तर में गिरावट आई है. रिपोर्ट के मुताबिक, 59.17 प्रतिशत क्षेत्र में जल स्तर में 0-2 मीटर की गिरावट देखी गई है, 0.08 प्रतिशत क्षेत्र में 2-4 मीटर की गिरावट देखी गई है और 1 प्रतिशत से कम क्षेत्र में 4 मीटर से अधिक की गिरावट देखी गई है.

कृषि वैज्ञानिक धान की बुआई समय से पहले करने के सरकार के फैसले से चिंतित हैं. डॉ. एसएस जोहल, डॉ. जीएस खुश, डॉ. रतन लाल, डॉ. बीएस ढिल्लों, डॉ. जेएस समरा, डॉ. जय रूप सिंह, डॉ. एसएस चहल, डॉ. जेएस महल, डॉ. एनएस बैंस और डॉ. डीएस चीमा जैसे बड़े वैज्ञानिकों ने पूर्व नौकरशाह काहन सिंह पन्नू के साथ मिलकर पंजाब वाटर इनिशिएटिव ग्रुप नाम से एक समूह बनाया है. इस समूह ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को पत्र लिखकर अपील की है कि पंजाब में भूजल में कमी के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचने के लिए धान की जल्दी बुआई की अनुमति देने के फैसले पर दोबारा से विचार करने को कहा है.

ये भी पढ़ें – कृषि मंत्री ने सीतामढ़ी में बीज प्रसंस्करण इकाई और गोदाम का किया उद्घाटन, किसान कल्याण संवाद की भी शुरुआत की

क्या लिखा है पत्र में?
पत्र में लिखा है कि हम सभी जानते हैं कि पंजाब में भूजल स्तर हर साल 2 फीट की दर से नीचे जा रहा है. इसलिए, राजनीतिक अधिकारियों, प्रशासकों, योजनाकारों और बुद्धिजीवियों की वर्तमान पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि वे स्थिति को सुधारने के लिए तत्काल कार्रवाई करें. पिछले लगभग 40 वर्षों में पंजाब में भूजल की लगातार कमी का सबसे बड़ा कारण धान की खेती है.

पत्र में आगे कहा गया है कि खड़े पानी में धान की रोपाई, चाहे वह पोखर हो या न हो, खासकर मॉनसून के आने से पहले, न केवल जल संसाधन के लिए बल्कि पर्यावरण के लिए भी विनाशकारी है. पंजाब उप मृदा जल संरक्षण अधिनियम, 2009, जिसके तहत धान की रोपाई की तारीख 10 जून तय की गई थी, कुछ हद तक जल संकट को कम करने में बड़ी कोशिश थी.

उन्होंने पत्र में सामूहिक रूप से कहा, “पिछले 16 वर्षों की अवधि के दौरान, कृषि वैज्ञानिक धान की ऐसी किस्में विकसित करने में सक्षम रहे हैं, जो 2009 से पहले की धान की किस्मों की तुलना में पकने में 30 दिन कम समय लेती हैं. धान की देरी से रोपाई ने राज्य में धान उत्पादन की गतिशीलता को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है, क्योंकि इस अवधि के दौरान धान के उत्पादन में वृद्धि देखी गई है.

धान की रोपाई में देरी के लिए विश्वविद्यालय द्वारा दिए गए विस्तृत तर्क को केवल कृषि की स्थिरता और पंजाब की सभ्यता के अस्तित्व के खतरे में ही नजरअंदाज किया जा सकता है. हम आपसे निर्णय पर दोबारा सोचने का आग्रह करते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि पंजाब का एक बड़ा क्षेत्र धान की कम अवधि वाली किस्मों के अंतर्गत आता है, जो रोपाई के बाद केवल 90-100 दिन में पक जाती हैं, इसलिए जुलाई में भी रोपी गई धान की फसल अक्टूबर के पहले पखवाड़े तक कटाई के लिए पक जाएगी.

ये देखें –

Pooja Rai

पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *