कुरुक्षेत्र, हरियाणा। आप ने अक्सर छोटी जोत वाले किसानों को यह कहते सुना होगा कि हमारे पास बहुत कम जमीन है, हम इससे कितना ही कमा सकते हैं। लेकिन इसके उलट देश में छोटी जोत वाले कई किसान ऐसे भी हैं, जिन्होंने कड़ी मेहनत और तकनीक के दम पर छोटी जोत होने के बावजूद खेती में सफलता हासिल की है। उन्हीं किसानों में से एक हैं हरियाणा के कुरुक्षेत्र के युवा और प्रगतिशील किसान अंकुर कुमार।

अंकुर पारंपरिक गेहूं और चावल की खेती से हटकर पिछले 6 सालों से मल्टीलेयर और स्टेकिंग विधि से टमाटर, शिमला मिर्च, लौकी और यहाँ तक कि स्ट्रॉबेरी भी उगा रहे हैं। उन्होंने सिर्फ 1.75 एकड़ में ₹22 लाख के टमाटर बेचे हैं। वे पानी के कुशल उपयोग और बेहतर उपज के लिए उभरी हुई क्यारियों, मल्चिंग शीट और ड्रिप सिंचाई का उपयोग करते हैं। अंकुर ने उच्च तकनीक वाले बीजों के साथ अपनी नर्सरी भी बनायी है। खेती में जल प्रबंधन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री भी उनकी तारीफ कर चुके हैं। कर्ज से सफलता तक का अंकुर का सफर भारत के 84% छोटे किसानों के लिए प्रेरणा है।

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कैसे होती है स्टेकिंग तकनीक से खेती
स्टेकिंग तकनीक से टमाटर की खेती करने के लिए बांस के डंडे, लोहे के पतले तार और सुतली की जरूरत होती है। इसमें सबसे पहले टमाटर के पौधों की नर्सरी तैयार की जाती है। इसमें करीब तीन हफ्ता लग जाता है और इस दौरान खेत में 4 से 6 फीट की दूरी पर मेड़ तैयार कर लिया जाता है। अंकुर बताते हैं कि स्टेकिंग विधि में बांस के सहारे तार और रस्सी का जाल बनाया जाता है और उसके ऊपर ही पौधे की टहनियों/लताओं को फैलाया जाता है।
उन्होंने बताया कि ऐसा करने से इन पौधों को ऊपर की ओर बढ़ने में सहायता मिलती है और पौधों की ऊंचाई भी 8 फीट तक हो जाती है। इसके साथ ही ऐसा करने से पौधों को मजबूती मिलती है। साथ ही उत्पादन भी बेहतर होता है। ऊंचाई पर होने के कारण पौधे या सब्जियों के सड़ने का खतरा भी ना के बराबर रह जाता है।

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