केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने परंपरा के अनुसार केंद्रीय बजट लाने से एक दिन पहले 22 जुलाई को संसद में इकोनॉमिक सर्वे(Economic survey) 2023-24 पेश किया। जिसमें मुख्य बात ये निकल कर आई है कि फ़ूड आइटम्स की ऊंची महंगाई दर के लिए सबसे बड़ा कारण क्लाइमेट चेंज है। सर्वे में एक और बात सामने आई है, चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर वी अनंत नागेश्वरन के अनुसार लोगों को एग्रीकल्चरल ऐक्टिविटीज़ से नॉन एग्रीकल्चरल ऐक्टिविटीज़ की ओर ले जाने वाली नेशनल स्ट्रेटेजी एम्प्लॉयमेंट और प्रॉपर्टी का क्रिएशन नहीं कर पा रही है। उनकी सलाह है – ‘जड़ों की ओर लौटें’ और खेती को देश के ग्रामीण युवाओं के लिए फैशनेबल और उपयोगी बनाएं।
सर्वे के मुताबिक उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) पर आधारित फ़ूड इन्फ्लेशन पिछले तीन सालों में लगभग दोगुनी हो गई है। CFPI वर्ष 2022 में 3.8 प्रतिशत था जो वित्त वर्ष 2023 में बढ़कर 6.6 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2024 में 7.5 प्रतिशत हो गया।
सर्वे में फ़ूड आइटम्स की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण मौसम की एडवर्स सिचुएशन को बताया गया है। फ़ूड आइटम्स की कीमतों में बढ़ोतरी का मुख्य कारण क्लाइमेट चेंज, लू , मानसून में बदलाव, बिना मौसम की बारिश, ओलावृष्टि, मूसलाधार बारिश और ड्रॉट को बताया गया है। सर्वे में हाल की फ़ूड आइटम्स में
महंगाई को एक ग्लोबल फेनोमेना बताया गया है।
सब्ज़ियों की क़ीमत बढ़ने की ये है वजह
सब्जियां और दालें दो ऐसे ज़रूरी फ़ूड आइटम्स हैं, जिनकी किसी परिवार के फ़ूड बजट को तय करने में सबसे ज्यादा भागेदारी होती है। इन दोनों पर ही मौसम की अन्स्टेबल सिचुएशन का सबसे ज्यादा असर पड़ा अहि।
सर्वे में कहा गया है कि जुलाई 2023 में टमाटर के दामों में वृद्धि का कारण फसल के उत्पादन के दौरान मौसम में बदलाव, क्षेत्र-विशेष के हिसाब से फसल में बीमारी जैसे – सफेद मक्खी (व्हाइट फ्लाई) का प्रकोप और देश के उत्तरी हिस्से में मानसून की बारिश का जल्दी आगमन था।
प्याज के दामों में वृद्धि के लिए भी सर्वेक्षण में मौसम की स्थितियों को ही जिम्मेदार बताया गया है। इसके अनुसार प्याज के दामों में वृद्धि के कई कारण जैसे सिंचाई के अंतिम सीजन के दौरान बारिश होने की वजह से रबी में होने वाले प्याज की गुणवत्ता पर असर पड़ना, खरीफ की फसल के दौरान बुआई में देरी होना, इसी दौरान लंबे ड्राई मौसम का होना और दूसरे देशों से व्यापार है।
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क्यों बढ़ रहे हैं दाल के दाम?
सर्वे में ये भी कहा गया है की पिछले दो सालों में अस्थिर और एक्सट्रीम वेदर कंडीशन की वजहों से फसलों का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। दालों, खासकर तूर दाल की कीमतें इसके कम उत्पादन की वजह से बढ़ीं, जिसके लिए प्रतिकूल मौसमी स्थितियां ज़िम्मेदार है। इसी तरह दक्षिणी राज्यों में मौसमी बाधाओं के चलते रबी के सीजन में बुआई की स्पीड धीमी रही, जिससे उड़द की दाल के उत्पादन पर असर पड़ा।
चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर वी अनंत नागेश्वरन ने क्या कहा ?
इकोनॉमिक एडवाइजर ने ज्यादा रोजगार पैदा करने और आर्थिक तरक्की सुनिश्चित करने के लिए कृषि-क्षेत्र की ओर वापस जाने की वकालत की। उन्होंने यह भी कहा कि हाल के सालों में ‘रिवर्स माइग्रेशन’ हुआ है और लोग खेती की ओर लौटे हैं। नागेश्वरन ने इसके पीछे यह तर्क दिया कि भविष्य में निर्माण और सेवा क्षेत्रों में रोजगार पैदा करने की ज्यादा संभावना नहीं रह गई है।
आगे कहा कि पहले के विकास मॉडल में अर्थव्यवस्थाओं को उनकी विकास यात्रा में कृषि से औद्योगिकीकरण की ओर मूल्य आधारित सेवाओं की ओर पलायन करते हुए देखा गया था। आज के दौर की तकनीकी प्रगति और भू-राजनीति इस पारंपरिक ज्ञान को चुनौती दे रही है। व्यापार संरक्षणवाद, संसाधन-जमाखोरी, अतिरिक्त क्षमता और मूल्य गिराना, तटवर्ती उत्पादन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI का आगमन देशों के लिए मैन्यूफ़ैक्चरिंग और सेवाओं से तरक्की की गुंजाइश को कम कर रहा है।
फिर उन्होंने कहा कि यह हम पर दबाव डाल रहा है कि हम अपनी पारंपरिक सोच को बदलें, साथ ही यह सवाल भी उठाया कि क्या कृषि-क्षेत्र, हमारा उद्धारक बन सकता है।’
उन्होंने सुझाव भी दिया की ‘जड़ों की ओर लौटने’ यानी खेती करने और वैसी नीतियां बनाने से इन उच्च मूल्यों को हासिल किया जा सकता है, किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है, फ़ूड प्रोसेसिंग और इंपोर्ट के लिए अवसर पैदा किये जा सकते हैं। इसके लिए कृषि-क्षेत्र को देश के ग्रामीण युवाओं के लिए फैशनेबल और उपयोगी बनाने की जरूरत है।
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