हरियाणा के कुरुक्षेत्र के हरबीर सिंह आज नर्सरी के बादशाह के नाम से जाने जाते हैं। एक समय उन्हें एक कंपनी ने फार्म में घुसने नहीं दिया था, उसी के बाद उन्होंने खुद की नर्सरी बनाने का फैसला किया। सिर्फ 2 एकड़ से शुरू हुआ सफर आज 17 एकड़ तक पहुंच चुका है, जहां हर साल 10 करोड़ पौधे तैयार किए जाते हैं। उनकी नर्सरी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यूपी, एमपी के साथ कई देशों तक जाती है।
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के शाहाबाद क्षेत्र के डालडू गांव में रहने वाले हरबीर सिंह आज पूरे देश में “नर्सरी के बादशाह” के नाम से जाने जाते हैं। लेकिन उनका यह सफर आसान नहीं था, उनकी कहानी मेहनत, जिद और सीख का बेहतरीन उदाहरण है।

एक इंस्पिरेशन बनी ठोकर
साल 2000 के आसपास जब हरबीर सिंह ने सब्जियों की खेती शुरू की, तो उन्हें अच्छी गुणवत्ता की नर्सरी की जरूरत पड़ी। इसी दौरान वह पंजाब में पेप्सिको के फार्म नर्सरी खरीदने गए, लेकिन उन्हें फार्म में घुसने तक नहीं दिया गया। उसी दिन उन्होंने ठान लिया—
“जब मुझे नर्सरी नहीं देखने दी, तो अब मैं इससे बड़ी नर्सरी बनाऊंगा।”
आज वह मुस्कुराते हुए कहते हैं, “पंजाब का वो फार्म बंद हो गया, लेकिन हमारी नर्सरी देखने दुनिया से लोग आते हैं।”

छोटी शुरुआत से 17 एकड़ तक
1995 में खेती की शुरुआत करने वाले हरबीर पहले धान और गेहूं उगाते थे। फिर सब्जियों की खेती शुरू की और अपनी जरूरत के लिए नर्सरी तैयार करने लगे। शुरू में सिर्फ 2 एकड़ में काम शुरू हुआ और धीरे-धीरे बढ़ते हुए आज उनकी नर्सरी 17 एकड़ में फैली हुई है।

10 करोड़ पौधों की सालाना क्षमता
आज हरबीर सिंह हर साल करीब 10 करोड़ पौधे तैयार करते हैं, जो पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल और मध्य प्रदेश समेत विदेशों तक भेजे जाते हैं।

कम लागत में अनोखी तकनीक
हरबीर सिंह 60×3.3 फीट के बेड बनाते हैं और उस पर करीब 2.5 इंच मोटी मिट्टी का मिश्रण बिछाते हैं। फिर उसी पर लाइनों में बीज बोते हैं। उनकी ये तकनीक पानी की बचत करती है और पौधों की क्वालिटी भी बेहतर बनाती है। इसी वजह से कृषि वैज्ञानिक भी इस तरीके में रुचि ले रहे हैं।
फरवरी 2023 में उन्हें नीदरलैंड्स के वर्ल्ड हॉर्टिकल्चर सेंटर में अपनी तकनीक प्रस्तुत करने का मौका मिला, जहां उन्होंने बताया कि कैसे कम पानी में नर्सरी तैयार की जा सकती है। उनका कहना है— “इस मिश्रण की मात्रा फसल और मौसम के हिसाब से बदलती है। ये मैंने अनुभव और कोशिशों से सीखा है।”

वैज्ञानिकों और छात्रों की पहली पसंद
हरबीर की नर्सरी न सिर्फ किसानों के लिए सीखने की जगह है, बल्कि रिसर्च सेंटर भी बन चुकी है।अब तक कई छात्रों ने यहीं से अपनी PhD पूरी की है और देश-विदेश के वैज्ञानिक उनकी तकनीक को समझने आते हैं।वे जर्मनी और इटली जैसे देशों में लेक्चर भी दे चुके हैं।

तेज और स्वस्थ नर्सरी के लिए खास सिस्टम
अपनी नर्सरी में वे माइक्रो स्प्रिंकलर सिस्टम, रेन पाइप, पॉलीथीन + PPNW कवर और मल्च पेपर से बना विशेष जर्मिनेशन चैंबर का इस्तेमाल करते हैं। इनकी वजह से ठंड में भी पौधे जल्दी और बिना बीमारी के तैयार हो जाते हैं। हरबीर का दावा है—
“पिछले 16 साल में एक भी पौधा बीमार नहीं पड़ा।”

रोजगार और बदलाव का केंद्र
उनकी नर्सरी में आज लगभग 150 लोग काम करते हैं, जिनमें से 100 से ज्यादा महिलाएं हैं। उन्होंने न सिर्फ खेती को नया आयाम दिया, बल्कि लोगों के लिए रोजगार का बड़ा अवसर भी बनाया।
हरबीर सिंह की कहानी हमें बताती है कि अक्सर ठोकरें दिशा बदल सकती हैं। सीख और प्रयोग, खेती को भविष्य दे सकते है और एक किसान सिर्फ उत्पादक ही नहीं, नवाचार का नेता भी बन सकता है।
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पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।