भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने जीनोम एडिटेड चावल का विरोध करते हुए कहा कि यह किसानों, उपभोक्ताओं और पर्यावरण के लिए खतरा है। उन्होंने सरकार से देसी किस्मों को बढ़ावा देने और तकनीक की जैव सुरक्षा रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की।
भारतीय किसान यूनियन (BKU) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर ICAR द्वारा जारी की गई जीनोम एडिटेड (GE) चावल की दो नई किस्मों पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि सरकार इन्हें जल्द ही किसानों और उपभोक्ताओं तक पहुँचाने की तैयारी कर रही है, लेकिन यह फसलें किसानों, उपभोक्ताओं और पर्यावरण तीनों के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं।
देसी किस्में बिना जीएम तकनीक के भी दे सकती हैं ज्यादा उपज
टिकैत ने अपने पत्र में कहा कि BKU लंबे समय से जीएम फसलों (GM Crops) के खतरों को लेकर आवाज उठाता रहा है। उनका कहना है कि सरकार यह मानकर चल रही है कि ऐसी फसलें ज्यादा पैदावार देती हैं, लेकिन भारत और दूसरे देशों के कई उदाहरण बताते हैं कि देसी किस्में बिना जीएम तकनीक के भी ज्यादा उपज दे सकती हैं।
टिकैत ने उठाए बड़े सवाल
- जीन एडिटिंग में भी बाहरी वायरस और बैक्टीरिया के जीन का इस्तेमाल होता है, जिससे सेहत और पर्यावरण पर असर पड़ सकता है।
- इससे देसी चावल की किस्में खराब हो सकती हैं, जैसा पहले कपास में देखा गया।
- जीन एडिटिंग तकनीक पूरी तरह सुरक्षित नहीं है, इसमें गलत बदलाव भी हो सकते हैं।
- भारत में चावल को सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है, लेकिन जीन एडिटेड धान इस परंपरा के लिए उपयुक्त नहीं रहेगा।
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देसी किस्मों पर जोर
टिकैत ने कहा कि भारत में पहले से ही कई देसी चावल की किस्में मौजूद हैं जो सूखा, खारा पानी और कम संसाधनों में भी अच्छी पैदावार देती हैं। सरकार और ICAR को इन्हें बढ़ावा देना चाहिए, न कि जीन एडिटेड बीजों को। उन्होंने यह भी मांग की कि अगर सरकार और वैज्ञानिक इस तकनीक पर इतना भरोसा करते हैं तो इसकी पूरी जैव सुरक्षा रिपोर्ट और दस्तावेज सार्वजनिक किए जाएं।
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पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।