भारत में 44,000 से ज्यादा एफपीओ बने हैं, जिन्होंने किसानों को ताकत दी है, लेकिन ज़्यादातर पूंजी, कुशल संसाधन और प्रबंधन की कमी से जूझ रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि उन्हें टिकाऊ बनाने के लिए वित्तीय मदद और संस्थागत सहयोग ज़रूरी है।
भारत में अब तक 44,000 से ज्यादा किसान उत्पादक संगठन (FPOs) रजिस्टर्ड हो चुके हैं। यह दिखाता है कि किसानों के बीच एफपीओ का नेटवर्क मजबूत हो रहा है। चाहे विकसित क्षेत्र हों या पिछड़े, किसान अब मिलकर अपने उत्पाद और सेवाओं के बेहतर दाम पाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। एफपीओ ने किसानों को सामूहिक ताकत देकर उनकी मोलभाव करने की क्षमता बढ़ाई है।
कई बड़ी चुनौतियों से जूझ रहे हैं एफपीओ
लेकिन तस्वीर पूरी तरह से साफ नहीं है। अधिकांश एफपीओ कई बड़ी चुनौतियों से जूझ रहे हैं। जैसे कि कुशल मानव संसाधन की कमी, संस्थागत कर्ज़ की दिक्कत और इक्विटी कैपिटल (पूंजी) की कमी। यही वो ताकत है, जो एफपीओ को और सशक्त बना सकती है।
एफपीओ को टिकाऊ बनाने के लिए ये दो काम जरूरी
नाबार्ड और समुन्नति के एफपीओ कॉन्क्लेव में जारी स्टेट ऑफ द सेक्टर रिपोर्ट 2025 में एफपीओ की चुनौतियाँ और संभावनाएँ बताई गईं। 2020 में शुरू 10,000-एफपीओ योजना के तहत 10,099 एफपीओ बने, जिन्हें नीतिगत और संस्थागत सहयोग मिला। नाबार्ड, नैफेड, समुन्नति और नैबकिसान फाइनेंस ने हज़ारों एफपीओ को वित्तीय मदद दी। रिपोर्ट के मुताबिक, एफपीओ को टिकाऊ बनाने के लिए दो मोर्चों पर काम ज़रूरी है। एक, उन्हें संस्थान के रूप में मजबूत करना और दूसरा, स्थिरता के लिए संस्थागत तंत्र खड़ा करना।
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क्यों निष्क्रिय हो गए एफपीओ ?
बिज़नेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक कई एफपीओ रजिस्ट्रेशन के बाद निष्क्रिय हो गए। वजह है कमजोर प्रबंधन, पूंजी की कमी और व्यवसायिक अवसर न मिलना। साथ ही, रिटर्न फाइल करना, एजीएम कराना और रिकॉर्ड संभालना भी चुनौती है, क्योंकि अधिकतर एफपीओ के पास प्रशिक्षित स्टाफ और सपोर्ट सिस्टम नहीं हैं।
रिपोर्ट में और क्या है?
रिपोर्ट से पता चला कि देशभर में एफपीओ का फैलाव बराबर नहीं है। करीब एक-तिहाई महाराष्ट्र में हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में 6,524 एफपीओ मौजूद हैं। रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ 387 एफपीओ की पेड-अप कैपिटल ₹15 लाख से ज्यादा है। कॉन्क्लेव में सह्याद्रि फार्म्स के एमडी विलास शिंदे ने कहा कि किसानों को इसे खेती में निवेश मानकर इक्विटी कैपिटल में योगदान करना चाहिए, ताकि सामूहिक पूंजी से ढांचा बन सके और अतिरिक्त आय हो।
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।