उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले के प्रगतिशील किसान जय सिंह 40 साल से आलू और केले की खेती कर रहे हैं। वे खेत को तीन बार रोटावेटर से तैयार कर गोबर की खाद डालते हैं। उन्होंने बताया कि एक एकड़ में 12–15 क्विंटल बीज आलू (40–50 ग्राम) लगता है, जिसे उपचार के बाद बोया जाता है। पहली सिंचाई हल्की और बाद में पौधों की छतरी बनने पर पानी दिया जाता है। खाद में NPK, यूरिया, मैग्नीशियम और जिंक का संतुलन उनकी पैदावार को बेहतर बनाता है।
उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले के प्रगतिशील किसान जय सिंह पिछले 40 साल से आलू और केले की खेती कर रहे हैं। अपने लंबे अनुभव से उन्होंने ऐसी तकनीकें विकसित की हैं जिनसे आलू की फसल स्वस्थ रहती है और उत्पादन भी अधिक मिलता है। आइए जानते हैं उनकी सफल खेती का राज़।
खेत की तैयारी
जय सिंह पहले केले की फसल काटने के बाद खेत को तीन बार रोटावेटर से जोतते हैं। इससे मिट्टी में नमी बनी रहती है और वह नरम हो जाती है। इसके बाद वे प्रति एकड़ 500–600 घनफुट गोबर की खाद डालते हैं ताकि मिट्टी उपजाऊ हो सके।
बेड बनाना
फसल को अच्छी नमी और पानी की निकासी मिले, इसके लिए वे ज़मीन से करीब 11 इंच ऊँचे बेड बनाते हैं। इस तरीके से बीज सही जगह जमते हैं और सिंचाई भी आसानी से हो जाती है।
बुवाई का सही समय
जय सिंह ने बुवाई के लिए तीन समय बताया है। पहला समय: 21 से 28 अक्टूबर, दूसरा समय: 28 अक्टूबर से 5 नवंबर और अंतिम समय: 5 से 10 नवंबर । उनका मानना है कि इन तारीखों में बुवाई करने से फसल पर मौसम का कम असर पड़ता है और पौधे अच्छे से बढ़ते हैं।
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बीज का चुनाव और उपचार
वे सलाह देते हैं कि बीज आलू 40–50 ग्राम का होना चाहिए। एक एकड़ के लिए लगभग 12–15 क्विंटल (30,000 आलू) की ज़रूरत पड़ती है। बुवाई से पहले बीजों पर Emesto Prime छिड़का जाता है और फिर Dithane M45 व प्लास्टर ऑफ पेरिस से उपचार किया जाता है। बीजों को छाँव में सुखाकर बोना चाहिए।
सिंचाई की तकनीक
पहली सिंचाई में पानी इतना दिया जाता है कि बेड की ऊँचाई का लगभग एक-तिहाई (35%) हिस्सा गीला हो जाए। 15 दिसंबर के बाद जब पौधों की छतरी (canopy) बनने लगती है, तब नियमित सिंचाई की जाती है ताकि पौधे स्वस्थ रहें और फैल सकें।
खाद डालने की विधि
जय सिंह का खाद डालने का तरीका भी खास है। उन्होंने बताता कि NPK (12:32:16) – 3 बोरी प्रति एकड़, यूरिया – 1 बोरी शुरुआत में और 45 दिन बाद 1 बोरी और मैग्नीशियम व जिंक – 20–20 किलो प्रति एकड़ डालें।
जय सिंह की इन तकनीकों ने उन्हें एक सफल किसान बना दिया है। उनकी मेहनत और अनुभव किसानों के लिए मिसाल हैं, जिससे वे भी बेहतर पैदावार लेकर अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
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पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।