बिहार कृषि विभाग ने किसानों को चेताया है कि केले की फसल में काला सिगाटोका नामक फफूंदजनित रोग तेज़ी से फैल रहा है। यह रोग पत्तियों पर काले धब्बे और धारियाँ बनाता है, जिससे फल समय से पहले पककर खराब हो जाते हैं और किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है। कृषि विभाग ने बचाव के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% का छिड़काव करने की सलाह दी है। बिहार केले की खेती में अहम भूमिका निभाता है और हर साल लगभग 14.57 लाख टन उत्पादन करता है, जो देश के कुल उत्पादन का 4–5% है।
बिहार सरकार ने केला किसानों के लिए अहम सलाह जारी की है। राज्य के कृषि विभाग ने कहा है कि केले की फसल में काला सिगाटोका रोग तेजी से फैल रहा है, जो एक फफूंदजनित रोग है। इसकी वजह से केले की पत्तियों पर काले धब्बे और धारियाँ बनने लगती हैं। अगर समय पर इलाज न किया जाए तो फल समय से पहले पककर खराब हो जाते हैं और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
बीमारी के लक्षण
- पत्तियों के निचले हिस्से पर काले धब्बे और लाइनें
- बरसात और नमी वाले मौसम में तेजी से फैलाव
- केले का फल पूरी तरह पकने से पहले ही सूख जाना
- किसानों को सही दाम पर फसल नहीं मिल पाना
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बचाव के उपाय
कृषि विभाग ने किसानों को सलाह दी है कि रोग से बचाव के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% घुलनशील पाउडर को 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
किसान अगर समय रहते काला सिगाटोका रोग को नियंत्रित कर लें, तो उनकी फसल सुरक्षित रहेगी और बाजार में अच्छी कीमत मिलेगी। साथ ही केला खेती की बढ़ती मांग को देखते हुए यह फसल किसानों की स्थायी आय का भरोसेमंद जरिया साबित हो सकती है।
बिहार में केले की खेती
बिहार भारत में केला उत्पादन का एक अहम राज्य है, जहाँ वैशाली, समस्तीपुर, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिलों में बड़े पैमाने पर खेती होती है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB) के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में हर साल लगभग 14.57 लाख टन केला उत्पादन होता है, जो देश के कुल उत्पादन का लगभग 4–5% है। यहाँ की उपजाऊ मिट्टी और गंगा के मैदानी इलाकों की जलवायु केले की खेती के लिए बहुत उपयुक्त है।
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।