भारत में हर साल बर्बाद हो जाती हैं 1.5 लाख करोड़ रुपये की फल और सब्जियां: रिपोर्ट

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भारत में हर साल 1.52 लाख करोड़ रुपये के फल-सब्जियां बर्बाद होती हैं, जिससे न सिर्फ किसानों को नुक़सान होता है बल्कि पानी, बिजली और संसाधनों की भी हानि होती है. रिपोर्ट के मुताबिक हर साल लगभग 15 फीसदी तक फलों और 12 फीसदी तक सब्जियों का नुकसान होता है.

भारत में हर साल करीब 73.6 लाख टन फल और 1.2 करोड़ टन सब्जियां बर्बाद हो जाती हैं, जिसकी कुल कीमत लगभग 1.52 लाख करोड़ रुपये है. यह जानकारी सरकार के लिए NABCONS द्वारा की गई एक स्टडी में सामने आई है. यह देश में उगाए गए कुल फलों का 6 से 15 फीसदी और सब्जियों का 5 से 12 फीसदी है, जो भारत के कृषि GVA (ग्रॉस वैल्यू एडेड) का करीब 3.7 फीसदी बनता है. यह सिर्फ पैसों की बर्बादी नहीं, बल्कि 12.5 करोड़ छोटे और सीमांत किसानों की मेहनत, पानी, बिजली और संसाधनों की बर्बादी भी है.

बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक McKinsey का अनुमान है कि अगर जरूरी सुधार किए जाएं, तो भारत का कृषि क्षेत्र 2035 तक 120 लाख करोड़ रुपये और 2047 तक 265 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है. लेकिन जब हर साल 1.5 लाख करोड़ रुपये का भोजन बर्बाद हो रहा हो, तो इस लक्ष्य तक पहुंचना मुश्किल है. गेहूं और चावल की तरह फलों और सब्जियों को MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) जैसी सुरक्षा नहीं मिलती, इसलिए इनके खराब होने का जोखिम और भी ज्यादा होता है.

फल और सब्जियों पर MSP के फायदे
फल और सब्जियों पर MSP को सिर्फ एक सब्सिडी की तरह नहीं, बल्कि एक स्ट्रैटेजिक कदम के रूप में देखा जाना चाहिए. इससे कीमतें स्थिर रहेंगी, किसानों को सुरक्षा मिलेगी और बर्बादी कम होगी. MSP की मदद से ओवरसप्लाई (उत्पादन अधिक होने) की स्थिति में भी किसानों को एक न्यूनतम मूल्य गारंटी मिल सकेगी. इसके साथ ही यह नीति कोल्ड स्टोरेज, ट्रांसपोर्ट, वेयरहाउस और अन्य बुनियादी ढांचे में निवेश को बढ़ावा देगी. इससे न सिर्फ खाद्य अपव्यय घटेगा, बल्कि फसल विविधीकरण (crop diversification) को भी बढ़ावा मिलेगा.

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प्रोसेसिंग एक जरूरी रणनीति
McKinsey का सुझाव है कि सभी फल और सब्जियों को कोल्ड स्टोरेज में नहीं रक सकते. इसलिए खाद्य प्रोसेसिंग एक जरूरी रणनीति बन जाती है. ऐसी संवेदनशील फसलों को जूस, प्याज फ्लेक्स, टमाटर प्यूरी, अदरक पेस्ट, आलू स्टार्च, जैम, जेली, अचार जैसे उत्पादों में बदलकर न सिर्फ उनकी बिक्री और निर्यात बढ़ाया जा सकता है, बल्कि इससे देश को विदेशी मुद्रा भी मिलेगी. इसके साथ ही, भारत की पहचान एक वैश्विक कृषि-प्रोसेसिंग हब के रूप में मजबूत होगी.

NAFED और NCCF की बड़ी भूमिका
रिपोर्ट में कहा गया है कि फल और सब्जियों पर MSP लागू करने के लिए जो विशेषज्ञता और ढांचा चाहिए, उसका बड़ा हिस्सा भारत के मौजूदा कृषि सिस्टम में पहले से ही मौजूद है. NAFED, NCCF और राज्य की एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड्स जैसे अर्ध-सरकारी संस्थानों के पास कमोडिटी खरीद का दशकों का अनुभव है. ये संस्थाएं न सिर्फ खाद्यान्न की खरीद, बल्कि किसानों से जुड़ाव और मांग-आपूर्ति असंतुलन की स्थिति में बाजार स्थिरीकरण में भी सक्रिय रही हैं. खासतौर पर NAFED ने दालों और तिलहन की MSP खरीद में 6 दशक का सफल अनुभव हासिल किया है. NAFED ने ई-समृद्धि नाम से एक डिजिटल प्लेटफॉर्म शुरू किया है, जिससे किसानों को सीधा बाजार मिल रहा है और MSP प्रक्रिया पारदर्शी और आसान हो गई है. फल और सब्जियों की MSP खरीद और प्रोसेसिंग को तेजी और व्यापकता से लागू करने के लिए देश के सहकारी ढांचे का उपयोग जरूरी है. FPOs और PACS जैसे मौजूदा नेटवर्क के पास छोटे किसानों का जुड़ा हुआ नेटवर्क है.

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Pooja Rai

पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।

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