रागी, जिसे मड़ुआ, फिंगर मिलेट, या लाल बाजरा भी कहा जाता है। रागी की खेती के लिए उचित समय मानसून की शुरुआत से पहले का होता है, यानी मई या जून में. यानी जो किसान इसकी बुवाई करना चाहते हैं, उनके लिए ये सही समय है। मुख्य बात ये है की देश में इसकी खेती को सरकार भी बढ़वा दे रही है। इसका रकबा और उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस बार खरीफ सीजन की सभी फसलों में रामतिल और कपास के बाद जिस फसल की एमएसपी सबसे ज़्यादा बढ़ाई गई है वो रागी ही है।रागी की एमएसपी में 596 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 4,886 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है।
रागी स्वास्थ्य के लिए भी काफ़ी फायदेमंद होता है। इसकी रोटी में कैल्शियम की मात्रा ज्यादा होती है और इसमें बहुत सारा फाइबर होता है। इसमें एक अमीनो अम्ल मेथिनोनीन भी होता है जो एक प्रोटीन घटक है। लगभग 100 ग्राम खपत पर यह 340 कि ग्रा कैलोरी ऊर्जा प्रदान करता है. इसे हरेक मौसम में खाया जा सकता है।
देश के अलग-अलग हिस्सों के लिए इसकी कई लोकप्रिय किस्में जारी की गई हैं। जैसे वीएल 101, वीएल 204, वीएल 124, वीएल 149, वीएल 146, वीएल 315 (105-115 दिनों में परिपक्वता) और वीएल 324 (105-135 दिनों में परिपक्वता) हैं।
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रागी की खेती का तरीका
श्री अन्न रागी की खेती सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर की जा सकती है। यह गंभीर सूखे को सहन कर सकती है और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी आसानी से उगाई जा सकती है। रागी की 4.5-8 पीएच वाली मिट्टी में सबसे अच्छी उपज दर्ज की गई है। इसे पूरे वर्ष आसानी से उगाया जा सकता है। यह सभी छोटे मिलेट के बीच अत्यधिक उगाई जाने वाली फसल है।
धान में ज्यादा पानी, खाद व कीटनाशक की जरूरत होती है। जबकि, इसके विपरीत रागी फसल में कम पानी, खाद व कीटनाशक की जरूरत होती है। अगर रागी फसल की खेती समय पर कर लिया जाए तो 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार मिल सकती है।
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।