गर्मी बढ़ने से गेहूं की फसल में इन बीमारियों का खतरा बढ़ा, रोकथाम के लिए IIWBR ने जारी की एडवाइजरी

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भारत में दूसरी सबसे महत्वपूर्ण अनाज फसल के रूप में गेहूँ का महत्वपूर्ण स्थान है। मुख्य रूप से, यह देश के उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में सबसे ज़्यादा खाये जाने वाला अनाज है। भारत ने वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण गेहूँ उत्पादक के रूप में अपनी जगह बनाई है, जो चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। दूसरी फसलों की तुलना में विश्व व्यापार के संदर्भ में गेहूं सर्वाधिक है। वैश्विक बाज़ार में भारतीय गेहूं की मांग हर वर्ष बढ़ती जा रही है।गेहूं का अच्छा उत्पादन भारतीय अर्थव्यवस्था की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। ऐसे में देश में गेहूं का अच्छा उत्पादन होना ज़रूरी है। लेकिन लगातार बढ़ती गर्मी की वजह से गेहूं की फसल पर कई रोगों का ख़तरा बढ़ गया है। इसके लिए भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR) के वैज्ञानिकों ने एडवाइजरी जारी की है।

रतुआ रोग
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि मौसम को ध्यान में रखते हुए गेहूं की फसल में रोगों, विशेषकर रतुआ की निगरानी करते रहें। अगर रतुआ रोग की पुष्टि होती है तो प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी का एक छिड़काव करें। एक लीटर पानी में एक मिली रसायन मिलाया जाना चाहिए और इस प्रकार 200 मिली फफूंदनाशक को 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ गेहूं की फसल में छिड़काव किया जाना चाहिए।

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भूरा अथवा पीला रतुआ
वैज्ञानिकों के मुताबिक़ काला, भूरा अथवा पीला रतुआ आने पर किसान फसल में डाइथेन एम-45 (2.5 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें। पीला रतुआ के लिये 10-20 डिग्री सेल्सियस तापमान उप्युक्त है। 25 डिग्री सेल्सियस तापमान से उपर रोग का फैलाव नहीं होता। भूरा रतुआ के लिये 15 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ नमी यूक्त जलवायु आवश्यक है। काला रतुआ के लिये 20 डिग्री सेल्सियस से उपर तापमान और नमी रहित जलवायु आवश्यक है। 

चेपा रोग
वैज्ञानिकों के अनुसार, गेहूं में लीफ एफिड (चेपा) पर लगातार नजर रखें। अगर लीफ एफिड की संख्या आर्थिक नुकसान के स्तर (ईटीएल: 10-15 एफिड /टिलर) को पार कर जाती हैं, तो क्विनालफॉस 25 प्रतिशत ईसी का इस्तेमाल करें। 400 मिली क्विनालफॉस को 200-250 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ में छिड़काव करें। 

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