बिहार कृषि विभाग ने किसानों को लीची में लगने वाले रोगों से बचाने के लिए दिया सुझाव

बिहार सरकार के कृषि विभाग ने लीची के कीटों की पहचान एवं प्रबंधन के लिए गाइडलाइन जारी की है। लीची में आक्रमण करने वाले शिशु और वयस्क कीटों का प्रबंधन किसान इन तरीकों को अपना सकतें हैं।

  1. लीची स्टिंक बग – यह कीट पौधों के कोमल हिस्सों और शाखाओं से रस चूसते हैं, जिससे फूल और फल काले होकर गिर जाते हैं।

प्रबंधन:

  1. (i) क्लोरफेनेपायर 10 प्रतिशत एस.सी. का 3 मिली / लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  2. (ii) बुप्रोफेजिन 25 प्रतिशत एस.सी. का 1.5 मिली / लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  3. (iii) इमिडाक्लोप्रीड 17.8 प्रतिशत एस.एल. का 0.5 मिली / लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

2 .दहिया कीट – यह कीट लीची के पौधों की कोशिकाओं से रस चूसते हैं, जिससे मुलायम तने, मंजर सूख जाते हैं और फल गिर जाते हैं।

प्रबंधन:

  1. (i) बाग की मिट्टी की निकाई और गुड़ाई करने से कीट के अंडे नष्ट होते हैं।
  2. (ii) तने के नीचे वाले भाग में 30 सेंटीमीटर चौड़ी अल्काथीन या प्लास्टिक की पट्टी लपेट देने और उस पर कोई चिकना पदार्थ (जैसे ग्रीस) लगाने से कीट के शिशु पेड़ पर नहीं चढ़ते हैं।
  3. (iii) जड़ से 3-4 फीट ऊपर वाले भाग को चूने से पुताई करें।
  4. (iv) इमिडाक्लोप्रीड 17.8 प्रतिशत एस.एल. का 1 मिली / 3 लीटर पानी में मिलाकर या थायोमेथाक्साम 25 प्रतिशत WG का 1 ग्राम / 5 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

3 . लीची माइट – यह कीट पत्तियों के निचले भाग से रस चूसते हैं, जिससे पत्तियाँ भूरे रंग की मखमल जैसी हो जाती हैं और सिकुड़कर सूख जाती हैं।

प्रबंधन:

  1. (i) इस कीट से ग्रस्त पत्तियों और टहनियों को काटकर जला देना चाहिए।

4. लीची स्टिंक बग (दूसरी बार उल्लेख):

  1. (ii) सल्फर 80 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 3 ग्राम या डायकोफॉल 18.5 प्रतिशत ई.सी. का 3 मिली या इथियॉन 50 प्रतिशत ई.सी. का 2 मिली या प्रोपरजाईट 57 प्रतिशत ई.सी. का 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

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