घना कोहरा, धूप न निकलना और तापमान में गिरावट। ऐसे मौसम में रबी सीजन की महत्वपूर्ण फसल सरसों में रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है। उत्तर प्रदेश के कृषि विभाग के मुताबिक़ ऐसे मौसम में सरसों की फसल में सफेद रतुआ बीमारी लगने की आशंका रहती है। ऐसे में सरसों किसानों को सचेत रहने की ज़रूरत है। किसान फसल का नियमित निरीक्षण करते रहें। लक्षण दिखाई देने पर समय रहते उपाय कर नुकसान से बचा जा सकता है।
व्हाइट रस्ट, जिसे हिंदी में सफेद रतुआ कहते हैं, सरसों में फंगस के कारण होने वाली बीमारी है। शुरुआती समय में इसके लक्षण पत्तों पर नजर आते हैं। पत्तों के नीचले भाग में सफेद धब्बे से दिखाई देते हैं। फसल में इस बीमारी का प्रकोप बढऩे पर यह पत्तों के बाद तने से होती हुई फलियों तक पहुंच जाती है। यह स्टेज फसल की काफ़ी हानिकारक होती है। फलियों में पहुंचने के बाद यह टहनी की ग्रोथ को रोक देती है और टहनियाँ मुड़ने लगती हैं। इससे क्या होता है कि फसल में फलियां बननी बंद हो जाती हैं। जानकारों का ऐसा कहना है कि पत्तों व तने पर अटैक के कारण पौधे की खुराक कम होती जाती है। फिर इन सबका असर सीधे तौर पर उत्पादन पर होता है। जाहिर है उत्पादन कम हो जाता है।
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बचाव के लिए क्या करें
कृषि विभाग के मुताबिक़ सरसों की फसल में सफेद रतुआ के लक्षण दिखायी देने पर किसान 600 से 800 ग्राम मैंकोजेब (डाइथेन एम 45) को 250 से 300 ली पानी मिलाकर प्रति एकड़ की दर से 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।
ये रोग भी सरसों की फसल के लिए ख़तरनाक
अधिक ठंड के मौसम में और भी बीमारियां हैं जो सरसों की फसल को ख़राब कर देती है।
1. आल्टरनेरिया ब्लाइट, सारों की फसल में लगने वाला एक ऐसा रोग है, जिसमें पत्तियो, तनों और फलियो पर गोल या अनियमित भूरे और काले धब्बे नजर आते हैं। धब्बों के चारों ओर पीले रंग का घेरा बना हुआ होता है। यह रोग बढ़ने पर पौधे की पत्तियां झड़ने लगती है।
2.झुलसा रोग, इस रोग में पत्तियों के ऊपर की सतह पर पीले कलर के धब्बे आने लगते हैं साथ ही पत्तियों के निचले भाग पर सफेद और भूरे फफूंद के लक्षण दिखाई देते हैं। इसके प्रकोप से सरसों की फसल की ग्रोथ रुक जाती है।
3.पाउडरी मिल्ड्यू रोग, इस रोग में पत्ती और तनों पर सफेद चूर्ण जैसे फफूंद नजर आते हैं। वही पत्तियां मुरझाकर गिरने लग जाती है साथ ही पौधा भी कमजोर हो जाता है।
ये सभी सरसों की फसल में अधिक ठंड और पाले में लगने वाली बीमारियां हैं। इनके लक्षण दिखायी देने पर किसान को अपने नज़दीकी कृषि केंद्र से इसके बारे में पता कर इसका तुरंत उपाय करना चाहिए।
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।