न्यूज पोटली के लिए अशोक परमार, मंदसौर मध्यप्रदेश
देश में जिस फसल का उत्पादन कुल तिलहन फसलों के उत्पादन का 42 प्रतिशत हो और जो फसल खाद्य तेल के उत्पादन में 22 परसेंट हिस्सा बांटता हो, उसी फसल का ये आलम है कि किसानों को उसे सस्ते में बेचना पड़ रहा है
हम बात कर रहे हैं सोयाबीन के फसल की. और सोयाबीन की ये स्थिति तब है जब सोयाबीन की खपत का 50 प्रतिशत सोयाबीन हमें विदेश से मंगाना पड़ता है. किसानों को कम दाम मिलना ही वजह है कि किसान खेत में खड़ी अपनी फसल नष्ट करने को मजबूर हैं. मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के तहसील गरोठ गांव देवरिया के किसान ने सोयाबीन की फसल का दाम नहीं मिलने पर खेत में खड़ी फसल 12 बीघा सोयाबीन पर ट्रैक्टर चला कर फसल को नष्ट कर दिया. इस किसान का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.
इस वीडियो में लहराती फसल पर किसान ट्रैक्टर चला कर नष्ट करता दिख रहा है. किसान कमलेश पाटीदार का कहना है कि कुछ दिन पहले कृषि उपज मंडी में पुरानी रखी सोयाबीन बेचने गया था। जिसकी कीमत 3800 प्रति क्विंटल से सोयाबीन बिकी, जबकि एमएसपी 4900 हैं. और एमएसपी सरकार ने ही तय कर रखी थी. फसल का उचित मूल्य न मिलने पर गुस्साए किसान कमलेश पाटीदार ने अपने गांव देवरिया में खेत में खड़ी फसल जो लगभग 12 बीघा जमीन में सोयाबीन पूरे शबाब पर होने के बावजूद किसान ने ट्रैक्टर से फसल को नष्ट कर दिया। किसान ने कहा कि सोयाबीन की कीमत अगर एमएसपी से भी कम आ रही है तो यह घाटे की खेती करने से अच्छा है कि खेत खाली पड़ा रहे.
मध्य प्रदेश में साल दर साल घटता सोयाबीन का उत्पादन
आँकड़े कहते हैं कि सोयाबीन की बुवाई और फसल उत्पाीदन के मामले में मध्य प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्यह है. किसान कल्याण तथा कृषि विकास बोर्ड, मध्य प्रदेश और सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) के अनुसार मध्य प्रदेश में खरीफ सीजन वर्ष 2023 में 52.050 लाख हेक्टेतयर क्षेत्र में सोयाबीन की बुवाई हुई और उत्पादन 52.470 मिलियन मीट्रिक टन (1,000 किलोग्राम) रहा था लेकिन किसान कल्याण तथा कृषि विकास बोर्ड, मध्य प्रदेश की ही रिपोर्ट के अनुसार सोयाबीन की बुवाई का रकबा बेशक बढ़ा हो लेकिन बुवाई के अनुपात में उत्पादन साल दर साल कम हुआ है. मध्यप्रदेश के ज्यादातर ज़िलों के आँकड़े इस बात की गवाही देते हैं.
ज़िलों का हाल
एमपी के जिले उज्जैन में साल 1997-98 में कुल 407,600 हेक्टेोयर में सोयाबीन की खेती हुई थी कि और कुल उत्पादन था 424,400 टन. साल 2019-20 में बुवाई का एरिया तो ज़रूर बढ़ गया लेकिन उत्पादन कम होकर 235,698 टन पर आ गया. आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि पिछले 24 वर्षों में खेती का एरिया तो बढ़ा लेकिन उत्पादन घटता चला गया.
इसी तरह मध्य प्रदेश के ही देवास जिले में साल 1997-98 की अपेक्षा बुवाई का रकबा तो बढ़ा लेकिन उत्पापदन में लगभग 26% की कमी आई. साल 1997-98 में रायसेन में कुल 132,400 हेक्टेयर में सोयाबीन की बुवाई हुई थी और उत्पादन हुआ था 181600 मीट्रिक टन. 2019-20 आते-आते ये बुवाई का कुल क्षेत्र भी कम हुआ और 97,491 हेक्टेरयर पर आ गया और उत्पादन हुआ 43,773 मीट्रिक टन. रायसेन में इन सालों के दरमियान 75 परसेंट से ज्यादा उत्पादन कम हुआ.
चारो तरफ से किसानों की आफत
पिछले दो-तीन सालों से सोयाबीन के किसान अलग-अलग मौकों पर अपनी परेशानियों का जिक्र कर चुके हैं. बेमौसम बारिश से खराब हुई फसलों से निराश किसान अब कम दाम मिलने की समस्या से जूझ रहे हैं. एक और किसान नागेश्वर पाटीदार ने बताया कि
“मैंने लगभग 12-13 बीघा जमीन जिसमे सोयाबीन की फसल लगाई थी, जिसमें से उन्होंने 5-6 बीघे फसल रोटावेटर की मदद से नष्ट कर दी. मैं कई सालों से सोयाबीन की खेती करते आ रहा हूँ लेकिन ये हालत कभी नहीं थी. नष्ट करने का कारण यही था कि मैं अभी कुछ दिन पहले पुराने सोयाबीन की फसल बेचने मंडी में गया था, जो 3600-3900 में बिके. ये इतना कम दाम है कि जिससे लागत ही निकलना मुश्किल है. मैंने सोचा कि अगर ये फसल भी 3000 से 3500 रुपये क्विंटल बिकेगी तो इससे बेहतर है कि खेत खाली रख दूँ, कम से कम खेत की उर्वरक शक्ति तो बनी रहेगी.”
विपक्ष का सरकार पर हमला
नागेश्वर पाटीदार की ये वीडियो वायरल हो जाने के बाद विपक्ष, मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार पर हमलावर है. मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने X पर अपनी एक पोस्ट में कहा कि “सुनिए मुख्यमंत्री जी, सोयाबीन की खरीदी-बिक्री के बीच लागत का गणित भी यदि समझ लेंगे, तो किसान की पीड़ा समझने में भी देर नहीं लगेगी. यह एक नहीं, मध्य प्रदेश के हजारों किसान परिवारों का दर्द है! सरकारी लग्जरी के लिए करोड़ों खर्च करने वाली बीजेपी की मध्य प्रदेश सरकार इस दर्द पर मरहम कब लगाएगी?”
सोयाबीन किसानों की ये स्थिति क्यों है बड़ी चिंता?
सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के आंकड़ों के अनुसार सोयाबीन, देश में कुल तिलहन फसलों का 42 प्रतिशत और कुल खाद्य तेल उत्पादन में 22 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है. बढ़ती जनसंख्या के साथ खाद्य तेल की मांग भी बढ़ रही है. भारत अभी भी डिमांड का 50 परसेंट सोयाबीन दूसरे देशों से मंगा रहा है. ऐसे में सोयाबीन का घटता उत्पादन, किसानों का सोयाबीन की खेती के प्रति उदासीनता से भर जाना, निश्चित ही ऐसी समस्या है जो सरकारों के लिए भी बड़ी परेशानी बनने जा रही है.