पटना। देश की दूसरी सबसे बड़ी नदी जोड़ योजना कोसी-मेची नदी लिंक परियोजना को 2019 में ही केंद्र सरकार ने स्वीकृति दे दी थी। लेकिन केंद्र और राज्य सरकार के बीच कुछ विवाद को लेकर इस योजना की फाइल जमीन पर नहीं उतर पा रही थी। हालांकि 2024 के बजट घोषणा के बाद परियोजना एक बार फिर चर्चा में है। गौरतलब है कि केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहार के महत्वाकांक्षी और बहुप्रतीक्षित कोसी-मेची लिंक परियोजना समेत कई अन्य प्रोजेक्ट्स के लिए बजट में 11,500 करोड़ रुपए की घोषणा की है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी सोशल मीडिया पोस्ट पर बिहार के लिए बजट की घोषणा में कोसी-मेची नदी लिंक परियोजना का जिक्र किया। पूर्व जल संसाधन विभाग के मंत्री और राज्यसभा सांसद संजय झा ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि यह देखकर बहुत खुशी हो रही है कि माननीय वित्त मंत्री ने यह घोषणा की है कि त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम एवं अन्य स्रोतों के माध्यम से, केंद्र सरकार कोसी-मेची अंतर-राज्य लिंक परियोजना तथा 20 अन्य मौजूद एवं नई परियोजनाओं, जिनकी अनुमानित लागत 11,500 करोड़ रुपए है, के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करेगी।
जहां एक तरफ बिहार के सत्ताधारी नेता इस परियोजना के लिए केंद्र सरकार को धन्यवाद दे रहे हैं तो वहीं सीमांचल के किशनगंज लोकसभा के सांसद डॉ. मो. जावेद ने सदन में इस परियोजना को रद्द करने की अपील की है। उन्होंने सदन में कहा “मेची को जोड़ा जा रहा कोसी का पानी लाकर। अगर ऐसा हुआ तो ऑलरेडी जो लेक है वो बहुत बड़ा हो जायेगा। मेरी गुजारिश है कि अगर इंटरलिंकिंग करना है तो नॉर्थ बिहार के पानी को साउथ बिहार में भेजा जाए। इसलिए कोसी-मेची लिंक प्रोजेक्ट को इमीडिएट रद्द किया जाये।”
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कोसी मेची परियोजना का निरीक्षण करने गए कोसी नव निर्माण मंच के सदस्य
सरकार परियोजना के बारे में क्या कहती है?
इस परियोजना के फायदा और नुकसान को जानने से पहले आसान भाषा में इस परियोजना के बारे में जानिए। मध्य प्रदेश में केन-बेतवा योजना के बाद यह देश की दूसरी नदी जोड़ो परियोजना है जिसे 2019 में केंद्र सरकार से मंजूरी मिली थी। कोसी-मेची परियोजना के अंतर्गत हनुमान नगर बैराज के माध्यम से कोसी नदी के अधिशेष जल के एक हिस्से को 117 किलोमीटर लंबी लिंक नहर के माध्यम से महानंदा नदी की सहायक नदी मेची तक मोड़ने के लिए डिजाइन किया गया है। मोड़े गए पानी से बिहार के सीमांचल इलाके अररिया, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज जिलों में मानसून के मौसम में खरीफ फसल की सिंचाई की जा सकेगी। इस परियोजना को लेकर सरकार कहती है कि जब तक नेपाल में डैम नहीं बन जाता है, कोसी की तबाही से बचना संभव नहीं है। लेकिन कोसी मेची नदी जोड़ योजना के माध्यम से भी बड़े हिस्से को बाढ़ से बचाना संभव है। साथ ही इससे सिंचाई की सुविधा लाखों किसानों को मिलेगी।

विरोध क्यों हो रहा है?
कोसी नवनिर्माण मंच कोसी के इलाकों के लिए काम करती है। इस संस्था ने कोसी-मेची नदी लिंक परियोजना को लेकर दावा किया है कि इस परियोजना से बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई के सरकारी दावों और सरकारी दस्तावेज में काफी अंतर है।
कोसी नवनिर्माण मंच के अध्यक्ष महेंद्र यादव बताते हैं कि इस परियोजना के डीपीआर के मुताबिक यह परियोजना कोसी बाढ़ नियंत्रण का नहीं बल्कि सिंचाई देने की है।
राहुल यादुका अंबेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली के स्कूल ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में पीएचडी स्कॉलर है और कोसी पर शोध कर रहे है।
वे बताते हैं कि कोसी-मेची नदी जोड़ो परियोजना की डीपीआर में दिए गए आंकड़ों से पता चलता है कि बैराज से पूर्वी कोसी मुख्य नहर की ओर ज्यादा अतिरिक्त पानी नहीं भेजा जाएगा। इसलिए नीचे की ओर छोड़े जाने वाले पानी से कोसी दियारा में बाढ़ आने की संभावना बहुत कम नहीं होगी।
डीपीआर में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बाढ़ में कमी की संभावना न्यूनतम और आकस्मिक है। इसके अलावा यह भी संभावना है कि नहर की ओर जाने वाला पानी बिहार के पूर्वी जिले में जलभराव का कारण बन सकता है, जहां पहले से ही कई छोटी नदियां हैं। डीपीआर ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यह परियोजना मूलतः सिंचाई के लिए है। इसलिए बाढ़ में कमी के बारे में कोई भी दावा केवल बाढ़ से प्रभावी ढंग से निपटने में सरकार की विफलताओं से लोगों का ध्यान हटाने के लिए ही किया जाता है।
कोसी नवनिर्माण मंच के द्वारा सवाल पूछा गया है कि जब पूरी परियोजना पूर्ण रूप से कार्य करेगी तो उस समय मात्र 5247 क्यूसेक अतिरिक्त पानी का स्त्राव होगा। इसी साल 3.96 लाख क्यूसेक पानी था और बैराज 9 लाख क्यूसेक के डिस्चार्ज के लिए बना है। ऐसे में मात्र 5247 क्यूसेक पानी कम होने से बाढ़ कैसे कम होगी?
एक वक्त कोसी बैरेज का विरोध कर रहें इन गांव वालों को सरकार ने भरोसा दिलाया था कि सब ठीक होगा। हालांकि स्थिति और भी खराब हो गई है। ऐसे में इस परियोजना पर भारी सार्वजनिक धन खर्च किया जा रहा है। ऐसे में अगर भविष्य में ऐसा नहीं होता है, तो जवाबदेह कौन होगा?
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