भारत में बढ़ा जंगलों का एरिया, चीन फिर भी कैसे आगे है?

संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के अंतर्गत एक संस्था है जिसका नाम है खाद्य एवं कृषि संगठन. इस संस्था की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 2010 से 2020 तक हर साल 2,66,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र विकसित किया है और इसी का नतीजा है कि इस अवधि के दौरान सबसे अधिक वन क्षेत्र वाले शीर्ष 10 देशों में भारत को तीसरा स्थान प्राप्त हुआ है. कल जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन 1,937,000 हेक्टेयर के अधिकतम वन क्षेत्र लाभ के साथ दुनिया में सबसे आगे है, उसके बाद ऑस्ट्रेलिया 4,46,000 हेक्टेयर के साथ दूसरे और भारत तीसरे स्थान पर है और टॉप 10 में शामिल अन्य देशों में चिली, वियतनाम, तुर्की, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, इटली और रोमानिया शामिल हैं. इस रिपोर्ट के साथ साठ यूएन की इस संस्था ने भारत के प्रयासों के लिए पीठ भी थपथपाई है. इसमें देश की वन्य कृषि को बेहतर समर्थन देने के उद्देश्य से एक नई राष्ट्रीय नीति का विकास शामिल है.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि दुनिया के कुछ देशों में पेड़ों की कटाई में भी कमी आई है.
रिपोर्ट के अनुसार इंडोनेशिया में 2021 से 2022 तक वनों की कटाई में 8.4 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जबकि ब्राजील के अमेज़न में 2023 में वनों की कटाई में 50 प्रतिशत की कमी देखी गई. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2000 से 2010 और 2010 से 2020 के दौरान सकल वैश्विक मैंग्रोव हानि की दर में 23 प्रतिशत की कमी आई है. हालांकि रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि जंगलों का एरिया बेशक बढ़ा है लेकिन जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं की वजह से जंगलों में आग और कीटों का खतरा बढ़ रहा है.

रिपोर्ट के अनुसार
“जंगल में आग की तीव्रता और घटनाएं दोनों बढ़ रही हैं. 2021 में जंगल की आग के कारण कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में बोरियल वनों का योगदान लगभग एक-चौथाई था। 2023 में, जंगल की आग से वैश्विक स्तर पर अनुमानित 6,687 मेगाटन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होगा, जो उस वर्ष जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण यूरोपीय संघ से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन से दोगुना से भी अधिक है.
चलते चलते एक बात और, चीन और भारत बेशक इस खबर पर खुश हो लें कि हमारे यहाँ जंगल का एरिया बढ़ गया लेकिन एक मजबूत देश में हालात बिल्कुल विपरीत हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में 2027 तक कीटों और बीमारियों के कारण 25 मिलियन हेक्टेयर वनभूमि को 20 प्रतिशत से अधिक का नुकसान होने का अनुमान है।

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