देश के उपभोक्ता मामलों का एक विभाग है जो रोज इस्तेमाल में आ रही चीजों पर रिपोर्ट जारी करता है. इसे कहते हैं दैनिक खुदरा रिपोर्ट. यह रिपोर्ट जो सब्जियों के दाम के बारे में कह रही है वह आम आदमी(people) के लिए ठीक खबर तो नहीं ही है. रिपोर्ट के अनुसार, आलू की कीमत का राष्ट्रीय औसत लगभग 40 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 93 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया है. वहीं प्याज अधिकतम 80 रुपये प्रति किलोग्राम और औसतन 44 रुपये प्रति किलोग्राम पर बिक रहा है. टमाटर की अधिकतम कीमत 120 रुपये प्रति किलो और औसत कीमत 73 रुपये प्रति किलो है.
आलू, प्याज और टमाटर, ये वो सब्जियां जिनका इस्तेमाल हम हर रोज़ करते हैं, और मैं सही हूँ तो इनका प्रयोग दिन में तीन बार करते हैं. मतलब इनके बिना हमारा भोजन अधूरा है. लेकिन अभी इन सब्ज़ियों के लगातार बढ़ते दाम ने लोगों के किचन का बजट बिगाड़ दिया है। इन सब्ज़ियों के बढ़ते दाम के बारे में एक मीडिया संस्थान से हाउसवाइफ, स्टूडेंट्स और रेस्टोरेंट ओनर ने अपनी बात रखी, सुनिये वो क्या कहते हैं.
इस महँगाई को ले के 24 वर्षीय मीडिया में काम करने वाले उत्कर्ष गथानी, जो राजस्थान के हैं और दिल्ली में अपने परिवार से दूर रहते हैं। उत्कर्ष कहते हैं, “मैं अपना खाना ख़ुद बनाता हूँ, और कीमतों में वृद्धि की वजह से मैं टमाटरों को खरीदने के बजाय अदरक लहसुन के पेस्ट का उपयोग करते हुए पैकेज्ड टमाटर प्यूरी का उपयोग करता हूँ।” उनका कहना है कि यह बिल्कुल वैसा ही स्वाद नहीं देता है, लेकिन अपनी कमाई के हिसाब से मैनेज करना पड़ता है।
वो कहते हैं, ”सच कहूं तो, आवश्यक सब्जियों की बढ़ती कीमतों ने मेरे घरेलू बजट को मैनेज करना मुश्किल कर दिया है। यहां तक कि जब मैं बिग बास्केट और स्विगी इंस्टामार्ट जैसे डिलीवरी ऐप से ऑर्डर करता हूं, तो लागत पहले की तुलना में काफी अधिक होती है। बेसिक खर्च वहन करना एक दैनिक संघर्ष है इसलिए, मैंने वस्तुओं को सस्ते विकल्पों के साथ रिप्लेस्ड करना शुरू कर दिया है”
यह अकेले उनकी कहानी नहीं है. पिछले महीने जबसे मुख्य खाद्य पदार्थ खास कर सब्जियों के दाम बढ़ने शुरू हुए हैं, बाजार से लोग हल्के थैले और भारी दिल लेकर घर लौट रहे हैं।
देरी से हुई बारिश के कारण हुई राज्यों में फसल की क्षति लौकी परिवार, फूलगोभी और पत्तागोभी सहित सब्जियों की आसमान छूती कीमतों का एक कारण है.
इसी महँगाई ने रेस्टोरेंट और कैटरिंग जैसी खानपान सेवाओं को भी प्रभावित किया है जो फिलहाल अपनी प्रोडक्शन कॉस्ट में प्राइस राइज को एब्सर्ब करने की कोशिश कर रहे हैं। आईटीओ में उडुपी रेस्टोरेंट के मैनेजर हर्ष सिसौदिया ने एक बातचीत में बताया कि कैसे ये कीमतें उनके प्रॉफिट मार्जिन को प्रभावित कर रहीं हैं जबकि वे हर साल केवल एक बार जनवरी में अपने डिशेज़ की कीमत बढ़ाते हैं.
उन्होंने कहा कि “हम हर साल जनवरी में केवल एक बार डिशेज़ की कीमतें बढ़ाते हैं। हालांकि, ये कीमतें बढ़ती रहती हैं लेकिन इस बार यह काफी है.’’ उनका कहना था हमारे रेस्तरां की यही यूएसपी है कि हम खाने की क्वालिटी से कॉम्परोमाइज नहीं करते इसलिए कीमतें चाहे जो भी हों, हम व्यंजनों को वही रखते हैं. हमारे उत्तपम में प्याज और टमाटर सहित बहुत सारी सब्जियां हैं, इन सब्जियों की कीमतों में दो गुना वृद्धि के बावजूद इसकी कीमत और गुणवत्ता वही बनी हुई है और इसी वजह से रेस्टोरेंट के लिए सिर्फ़ सब्ज़ियों का साप्ताहिक खर्च 6-7 हज़ार से बढ़कर कर 14 से 15 हज़ार हो गया है.”
ज़्यादातर घर के मालिक भी अपने भोजन में इन प्रमुख सब्जियों से परहेज कर रहे हैं। मीडिया से बातचीत में 48 वर्षीय गृहिणी मोनिका सिंघल ने कहा कि उन्हें लगता है कि वह इन महंगी सब्जियों के बजाय दाल और अनाज के खाने पर निर्भर रहना पड़ेगा. वो कहती हैं, “मैं हर हफ्ते शुक्रवार को सब्जियां खरीदने जाती हूं। हालांकि, पिछले तीन हफ्तों से मैंने रोज इस्तेमाल की जाने वाली सब्जियों की कीमत में वृद्धि देखी है. हमें अपने बजट के अनुसार काम करना पड़ता है। इसलिए मैं उन्हें खरीदने से बचने की कोशिश करती हूं।और खाने में इसके बदले दाल से काम चलाती हूं।”
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