लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। भारत मिठाइयों का देश भी कहा जाता है। उन्हीं में एक मिठाई है पेठा, जो खबहा या पेठा वाले कद्दू से बनती है। अंग्रेजी में इसे ऐश गॉर्ड Ash Gourd कहा जाता है। कहीं कहीं पर इसे सफेद कद्दू या सफेद पेठा कहते हैं। पेठा बड़ी मात्रा में फाइबर होता है जो सेहत के लिए अच्छा माना जाता है। आगरा का पेठा तो दुनियाभर में फेमस है। इसके जूस को वजन कम करने में भी सहायक माना जाता है, इसलिए ये कच्चा भी खूब बिकता है, मार्केट में डिमांड है इसलिए खेती में भी अक्सर फायदा ही मिलता है। लेकिन क्या आपको पता है पेठा कहां से आता है ,कैसे बनता है?
उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के किसान बडे पैमाने पर पेठा (खबहा या सफेद पेठा) की खेती करते हैं। ये किसानों की आय बढाने वाली फसल है। इसकी खेती में लागत कम लगती है, समय कम लगता है और आमतौर पर उत्पादन अच्छा होता है, जिससे मुनाफा भी किसान को अच्छा होता है। पेठा की खेती देश में मुख्यत दो सीजन में होती है। शहरों में जूस की दुकानों पर इसका जूस आसानी से मिल जाता है जिसकी कीमत 25 से 30 रूपये प्रति गिलास होती है।

देश के जाने माने सब्जी विशेषज्ञ और ICAR के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में (बागवानी संभाग विभाग- फूल सब्जियां, मसाले और औषधीय पौधे) डॉ. सुधाकर पान्डे बताते हैं, “पेठा जून के महीने की मुख्य फसल है। ये 110 से 120 दिन में तैयार होने वाली फसल है। इसकी खेती के लिए 18 डिग्री सेल्सियस से 33 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। इसके सात किलो से अधिक वजन फल की मांग ज्यादा होती है क्योंकि बडे फल में गूदा अधिक होता है। ऐसे में पेठा के कारोबारी बडे फलों को ही लेते हैं। छोटे फल पेठा बनाने के लिए सही नही होते हैं। इसको कच्चा भी खाना चाहिए ये काफी फायदेमंद होता है।”
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के आकडों के मुताबिक वर्ष 2022 में कद्दू वर्ग की सभी फसलों का 109 हेक्टेयर क्षेत्रफल में 2200 मेट्रिक टन उत्पादन हुआ था। पेठा की बुवाई खेतों में कद्दू या लौकी की तरह ही की जाती है। किसान नाली बनाकार दोनों तरफ 8-12 इंच पर इसके बीजों की बुवाई करते हैं। पेठा या हो या कद्दू वर्गीय दूसरी सब्जियां उन्हें बेड़पर ही लगाना चाहिए ताकि उनकी जड़ों में जलजमाव न हो। कुछ किसान खरपतवार से बचने के लिए बेड़ पर प्लास्टिक की मल्चिंग सीट भी बिछाते हैं।
लखनऊ में पेठे की फैक्ट्री चलाने वाले दीपक सिंह ने बताया, “हम लोग पेठा बनाने के लिए 5 किलो से अधिक वजन फल लेते हैं। बडे फलों से पेठा अच्छा बनता है। उसका स्वाद अच्छा होता है। छोटे फल हमारे काम के नहीं होते हैं। पेठा बिना मिलावट वाली मिठाई है। हमारे यहां उन्नाव,बरेली समेत कई जिलों के किसान आते हैं। वे हमें बिना किसी बिचौलिये के पेठा बेचते हैं। इससे उनकी आय बढ रही है।”
लखनऊ, स्थित नवीन गल्ला मंडी के आढती राम गुलाम रावत ने न्यूज पोटली को फोन पर बताया मंडी में, “पेठे की मांग गर्मियों के मौसम में अधिक होती है। कई जिलों के किसान यहां अपनी फसल बेचने आते हैं। छोटे साइज का पेठा फुटकर व्यापारी ले जाते हैं और बडे साइज का पेठा फैक्ट्री संचालक ले जाते हैं। हम कई फैक्ट्रियों सप्लाई भी करते हैं।”
पेठे की उन्नत किस्में
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान,वाराणसी द्वारा विकसित की गई उन्नत किस्में काशी धवल,काशी उज्ज्वल,काशी सुरभी हैं। ये 110 से 120 दिन में तैयार हो जाती हैं। सभी किस्मों के फल 7 किलो से अधिक वजन होते हैं। ये सभी किस्में पेठे के लिए उपयुक्त होती हैं।
इसके साथ ही किसान VNR कंपनी और कलश कंपनी का पेठा बहुतायत से बोते हैं, क्योंकि ये लंबे होते हैं इन्हें काटने में, मशीन ये छीलने में आसानी होती है। इसलिए फैक्ट्री संचालक लंबा पेठा ही पसंद करते हैं।
कैसे डालें खाद
पेठे की फसल में दूसरी फसलों की अपेक्षा खाद कम डाली जाती है। यदि खाद का छिडकाव करने की बजाय गड्ढे में खाद डालेंगे तो खाद की बचत होगी। यदि बिजाई के समय केचुंए की खाद को गड्ढे में मिला दिया जाये तो पौधे की ग्रोथ अच्छी होती है।
कब करें सिंचाई
गर्मी के मौसम में पांचवें दिन खेत में पानी लगाना चाहिए। बारिश के मौसम में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। खेत में जल निकासी अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। खेत में पानी एकत्र नहीं होना चाहिए।
कीट रोग नियंत्रण
पेठे की फसल में ज्यादा कीट और रोग नहीं लगते हैं। नाजुक फलों में फल मक्खी के लगने की सम्भावना बढ़ जाती है। ये फलों के अन्दर अन्डे दे देती है ऐसे में फल सड जाता है। इससे बचाव के लिए स्टिकी ट्रैप और फ्रूट फ्लाई ट्रैक का उपयोग करना चाहिए।
कब करें तुड़ाई
किसानों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि फल पकने पर ही पेठे की तुडाई करें। पके हुए फल के ऊपर सफेद पाउडर जम जाता है और फल चिकना दिखता है। यदि फसल की देखभाल अच्छे से होती है तो एक एकड़ 55 से 65 टन उत्पादन होता है।
पेठे की व्यवासायिक खेती
बदलते में समय में बेमौसम खेती और व्यवासायिक खेती का चलन बढ़ा है। क्योंकि पेठे की डिमांड मार्च से लेकर जून तक सबसे ज्यादा होती है, इसलिए बहुत सारे किसान दिसंबर से फरवरी में इसकी रोपाई करते हैं। सर्दियों मेँ खबहा लगाने वाले किसान तरबूज-खीरा और खरबूज की तरह लो-टनल बनाकर उसे उगाते हैं और सर्दियों से बचाने के लिए क्रॉप कवर का इस्तेमाल करते हैं। बाराबंकी के किसान नरेंद्र शुक्ला के मुताबिक वो पिछले 3 वर्षों से सर्दियों में खबहा की खेती कर रहे हैं, अगर मार्च से अप्रैल तक फल तैयार हो जाता है तो आसानी से 10-15 रुपए किलो का भाव मिल जाता है। ऐसे में एकड़ से एक लाख तक आसानी से मिल जाते हैं।’ हालांकि वो कहते हैं कि क्योंकि इसकी फैक्ट्री हर जगह नहीं है इसलिए मार्केट एक समस्या रहती है।