तकनीक से तरक्की पार्ट-7: स्प्रिंकलर से आलू की खेती, महीने में 80 हजार से 1 लाख की कमाई

आशीष तिवारी अपने भाई अतुल तिवारी के साथ स्प्रिंकलर सिस्टम फिट करते हुए।

कन्नौज (उत्तर प्रदेश)। आलू सब्जियों का राजा है। धान-गेहूं की तरह भी आलू करोड़ों लोगों की भूख मिटाता है। आलू उत्पादन में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है। भारत में सबसे ज्यादा आलू उत्तर प्रदेश में पैदा होता है। सर्दियों के मौसम में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर सफर करेंगे तो चारों तरफ आलू ही नजर आएगा। आलू करोड़ों किसानों की मुख्य फसल है। हालांकि ज्यादातर किसान आज भी पुराने ढ़र्रे पर खेती कर रहे हैं, जिन किसानों ने आलू की खेती एक कदम आगे बढ़कर काम किया है, वो दूसरों से कहीं ज्यादा कमाई कर रहे हैं। तकनीक से तरक्की सीरीज में मिलिए युवा किसान आशीष त्रिपाठी से.. जो इत्र के शहर कन्नौज में नई तकनीक से आलू उगाकर किसानों के रोल मॉडल बन गए हैं।

गांव में शानदार घर, 2-2 ट्रैक्टर, कार और जरुरत का हर सामान। सब कुछ खेती की देन हैं। लेकिन खुद आशीष के पिता और घर के बाकी लोग कभी नहीं चाहते थे कि वो खेती करें। कुछ साल आशीष ने यूपी से बाहर नौकरी की भी, लेकिन कन्नौज की मिट्टी की खुशबू उन्हें वापस खींच लाई। विरोध हुआ, मुश्किलें झेंली। गांव वालों ने मजाक भी उडाया गया। लेकिन आशीष और उनके चचेरे भाई की जोड़ी ने ऐसा काम किया कि लोग उनसे सलाह लेने आते हैं।

आशीष के मुताबिक कन्नौज ही नहीं आगरा बेल्ट में 80 से ज्यादा फीसदी लोग आलू की खेती करते हैं। एक साथ बड़े पैमाने पर खेती होने से बिक्री में समस्या नहीं आती, लेकिन क्वालिटी का आलू उगाना मुश्किल काम है। आशीष कहते हैं, आलू की 60 से 100 दिन की फसल के दौरान कई बार सिंचाई करनी पड़ती है, उर्वरक आदि का छिड़काव करना होता, जिसके लिए मजदूर चाहिए होते थे वो मिलना मुश्किल हो रहा था, ऐसी कई समस्याओं से निपटने के लिए उन्होंने अपने खेतों में सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर सिस्टम लगाया है।”

आशीष कहते हैं, “अब न उन्हें नालियों में ज्यादा पानी भरने का डर है और न ही कम पानी से पौधे सूखने का।”

वो आगे कहते हैं, “स्प्रिंकलर लगाने का एक बड़ा फायदा ये मिला है कि 2 साल में आलू में पाले का रोग नहीं लगा। नई तकनीक से आलू की खेती में उन्हें 10-20 फीसदी तक उत्पादन ज्यादा मिला है। साथ ही मार्केट में उनका आलू हाथों हाथ बिकता है, रेट भी ज्यादा ही मिलता है।”

आशीष के बड़े भाई और आलू के अनुभवी किसान अतुल तिवारी कहते हैं, “कुदरती बारिश की तरह जब स्प्रिंकलर से पानी की बूंदे गिरती हैं तो हर पत्ती धुलकर चमक उठती है। स्प्रिंकलर लगवाकर वो इसलिए भी खुशी हैं क्योंकि वो सिंचाई के साथ उर्वरक का भी छिड़काव कर लेते हैं। अब 10-20 आदमियों का काम एक आदमी करता है।”

माइक्रो इरिगेशन अपनाने से आलू का उत्पादन कैसे बढ़ता, अतुल तिवारी उसका पूरा गुणाभाग उंगलियों पर समझाते हैं।

आशीष की तरह उत्तर प्रदेश के कई जिलों के आलू अब आलू की खेती में स्प्रिंकलर का प्रयोग कर रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों और जानकारों का मानना है, आलू की खेत में अगर उन्नत बीज, पानी और खाद का सही प्रबंधन किया जाए तो पैदावार कम से कम 20 फीसद तक बढ़ सकती है। किसानों के हितों और माइक्रो इरिगेशन के फायदे को देखते हुए पूरे देश में 80-90 फीसदी अनुदान भी मिल रहा है।

आशीष कहते हैं, “खेती में बहुत संभावनाएं हैं, कमाई नौकरी से कहीं ज्यादा है। आज वो अपने घर लौटने, के खेती के फैसले से खुश हैं. क्योंकि गांव में परिवार के साथ रहकर शहर से कहीं ज्यादा कमा रहे हैं।”

तकनीक से तरक्की में उन किसानों की कहानियां हैं, जिन्होंने खेती में कुछ नया किया है, नई मशीने, नई तकनीक का इस्तेमाल करके खेती को फायदे का सौदा बनाया है। वो किसान जो आम होकर भी बेहद खास हो गए हैं।

उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले के किसान फूलचंद वर्मा ने अपने 4 एकड़ आलू की फसल में स्प्रिंकलर इरिगेशन सिस्टम लगाया है, जो उन्हें 80 फीसदी सब्सिडी पर मिला है। फोटो- न्यूज पोटली

तकनीक से तरक्की सीरीज – न्यूज पोटली और जैन इरिगेशन की जागरुकता मुहिम है, सीरीज में उन किसानों की कहानियों को शामिल किया जा रहा है, जो खेती में नए प्रयोग कर, नई तकनीक का इस्तेमाल कर मुनाफा कमा रहे हैं। ड्रिप इरिगेशन, आटोमेशन, फर्टिगेशन सिस्टम आदि की विस्तृत जानकारी के लिए संपर्क करें-

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