ASSOCHAM की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की खेती में असली बदलाव तभी आएगा जब तकनीक खेत तक पहुँचेगी। देश में 86% किसान छोटे हैं और अब भी डिजिटल या वैज्ञानिक तकनीक का फायदा नहीं ले पा रहे। रिपोर्ट ने सुझाव दिया है कि हर राज्य में “एग्री-टेक सैंडबॉक्स” बनाए जाएँ जहाँ नई तकनीकें जमीन पर टेस्ट हो सकें। साथ ही, एक “नेशनल डेटा कॉमन्स” बनाया जाए ताकि खेती से जुड़ा सारा डेटा एक जगह उपलब्ध हो सके। इसका मकसद किसानों की आमदनी बढ़ाना और कृषि को तकनीक से जोड़ना है।
भारत में खेती का चेहरा बदलने के लिए सिर्फ नई-नई तकनीकें काफी नहीं हैं। जरूरत है उन्हें एक साथ जोड़ने की। उद्योग संगठन एसोचैम (ASSOCHAM) की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को अब बिखरी हुई एग्री-टेक पहलों के बजाय एकीकृत यानी यूनिफाइड सिस्टम की ओर बढ़ना होगा, ताकि उन 86% छोटे किसानों तक तकनीक पहुंच सके जो अब तक इससे वंचित हैं।
क्यों जरूरी है एग्रीटेक को जोड़ना?
रिपोर्ट के मुताबिक, खेती में तकनीक का इस्तेमाल अभी तक कुछ बड़े किसानों या कंपनियों तक ही सीमित है। छोटे किसान न तो इनोवेशन तक पहुंच पा रहे हैं, न ही उसका फायदा उठा पा रहे हैं। इसलिए खेती को आगे ले जाने के लिए मौजूदा ढांचे में बड़े बदलाव की जरूरत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य की “स्मार्ट खेती” इस बात पर निर्भर करेगी कि भारत डेटा, तकनीक और इनोवेशन को कितना जोड़ पाता है।
राज्यों में बने ‘एग्री-टेक सैंडबॉक्स’
रिपोर्ट में एक बड़ा सुझाव यह दिया गया है कि हर राज्य में Agri-Tech Sandbox बनाया जाए यानी ऐसा प्लेटफॉर्म जहाँ नई तकनीक का टेस्ट और ट्रायल हो सके।इन सैंडबॉक्स में सरकारी एजेंसियां, स्टार्टअप और रिसर्च संस्थान मिलकर काम करेंगे ताकि कोई भी तकनीक किसानों तक पहुंचने से पहले वास्तविक खेतों में परखी जा सके।हर सैंडबॉक्स राज्य के कृषि विभाग के अधीन होगा, और ICAR, SAU, NABARD जैसी संस्थाएं इसमें भाग लेंगी। इसके संचालन के लिए कृषि मंत्रालय और नीति आयोग की संयुक्त निगरानी में एक राष्ट्रीय समिति बनाने की सिफारिश भी की गई है।
ये भी पढ़ें – प्याज की राजधानी नासिक में किसानों की हालत खराब, सरकार से मदद की गुहार
भारत में डेटा बिखरा, सिस्टम कमजोर
रिपोर्ट का कहना है कि भारत में खेती से जुड़ा डेटा कई हिस्सों में बिखरा पड़ा है।जैसे रिसर्च डेटा ICAR और कृषि विश्वविद्यालयों के पास है।बाजार का डेटा राज्य मार्केटिंग बोर्डों के पास है और खेत-स्तर का डेटा एग्री-टेक स्टार्टअप्स के पास।
इस बिखराव के कारण नई तकनीक और इनोवेशन की रफ्तार धीमी हो जाती है।इसे सुधारने के लिए रिपोर्ट में “Agricultural Data Commons” बनाने की सिफारिश की गई है, जहाँ सारा डेटा एक जगह हो और FAO के FAIR सिद्धांतों (Findable, Accessible, Interoperable, Reusable) के आधार पर साझा किया जा सके।
किसानों के लिए आसान मॉडल जरूरी
रिपोर्ट में कहा गया है कि एग्री-टेक स्टार्टअप्स को सिर्फ प्रोडक्ट बेचने के बजाय किसानों की ज़रूरतों और स्थिति के हिसाब से काम करना चाहिए।जैसे सस्ती तकनीक के लिए डायरेक्ट टू फार्मर मॉडल और महंगी या जटिल तकनीक के लिए साझेदारी मॉडल (Collaborative Ownership) अपनाना चाहिए।साथ ही किसानों को तकनीक अपनाने में मदद के लिए क्रेडिट-लिंक्ड लोन, कम्युनिटी-बेस्ड डिस्ट्रीब्यूशन और फसल चक्र आधारित भुगतान व्यवस्था जैसे वित्तीय मॉडल अपनाने की सलाह दी गई है।
इंफ्रास्ट्रक्चर और प्रशिक्षण पर जोर
एसोचैम ने कहा है कि सरकार को ग्रामीण कोल्ड चेन, स्टोरेज, लॉजिस्टिक्स और फाइनेंस मॉडल को मजबूत बनाना चाहिए।
साथ ही किसानों और FPOs (किसान उत्पादक संगठनों) को डिजिटल साक्षरता और एआई आधारित उपकरणों का प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए, ताकि तकनीक सिर्फ कागजों में नहीं बल्कि खेतों में उतर सके।
रिपोर्ट के मुताबिक, अगर भारत एग्रीटेक को जोड़ने और लागू करने में सफल होता है, तो वह अपने कृषि क्षेत्र को डिजिटल, स्मार्ट और टिकाऊ इकोसिस्टम में बदल सकता है, जहाँ नवाचार सिर्फ प्रयोगशालाओं में नहीं, बल्कि हर किसान के खेत में दिखेगा।
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।