इस खरीफ फसल सीजन में अरहर/तुअर का रकबा पिछले साल के स्तर से पीछे है, खासकर कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात में रकबे में गिरावट के कारण, क्योंकि किसानों का एक वर्ग मक्का, कपास और तिलहन जैसी अन्य लाभकारी फसलों की ओर रुख कर रहा है। हालांकि, तेलंगाना में इस रुझान के उलट, तुअर के रकबे में बढ़ोतरी देखी गई है।
अब तक, तुअर की बुआई का रकबा लगभग 8 प्रतिशत कम हुआ है। 25 जुलाई तक, लगभग 34.90 लाख हेक्टेयर (एलएच) में तुअर की बुआई हो चुकी है, जबकि पिछले साल इसी अवधि में 37.99 लाख हेक्टेयर (एलएच) में तुअर की बुआई हुई थी। कृषि मंत्रालय के अनुसार, इस मौसम का सामान्य रकबा 44.71 लाख हेक्टेयर होता है।
25 जुलाई तक, कर्नाटक में तुअर का रकबा 13.01 लाख हेक्टेयर (15.42 लाख हेक्टेयर) था। राज्य का लक्ष्य 16.80 लाख हेक्टेयर है। सबसे बड़े उत्पादक जिले कलबुर्गी में, रकबा 5.35 लाख हेक्टेयर था। सूत्रों के अनुसार, बुवाई अभी भी जारी है, इसलिए यह रकबा लगभग 6 लाख हेक्टेयर तक बढ़ सकता है। तुअर की कीमतें कम होने के कारण, किसानों का एक वर्ग मक्का, कपास और गन्ने की खेती की ओर मुड़ गया है।
कम कीमत का प्रभाव
बिज़नेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक कलबुर्गी में कर्नाटक प्रदेश अरहर उत्पादक संघ के अध्यक्ष बसवराज इंगिन ने कहा कि बाजार मूल्य में गिरावट के कारण इस साल अरहर की बुआई कम हो सकती है। कलबुर्गी में अरहर की कीमतें ₹5,300-6,700 प्रति क्विंटल के बीच हैं, जो ₹8,000 के न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी कम है।तुअर के बड़े पैमाने पर आयात से घरेलू कीमतों पर असर पड़ता दिख रहा है और सरकार ने तुअर के शुल्क मुक्त आयात को 31 मार्च, 2026 तक बढ़ा दिया है।
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महाराष्ट्र में भी रकबा हुआ कम
इसी तरह, महाराष्ट्र में भी तुअर का रकबा पिछले साल के मुकाबले थोड़ा कम है। 21 जुलाई तक, महाराष्ट्र में तुअर का रकबा 11.44 लाख हेक्टेयर (11.60 लाख हेक्टेयर) था। गुजरात में भी, 28 जुलाई तक, तुअर का रकबा 1.55 लाख हेक्टेयर (1.96 लाख हेक्टेयर) कम था। आंध्र प्रदेश में भी, 23 जुलाई तक तुअर का रकबा 68,000 हेक्टेयर (82,000 हेक्टेयर) था।
पर्याप्त आपूर्ति
एकमात्र अपवाद तेलंगाना है, जहाँ किसान इस साल तुअर की बुआई का रकबा बढ़ा रहे हैं। राज्य कृषि विभाग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 23 जुलाई तक दलहन फसल का रकबा 4.21 लाख हेक्टेयर (3.65 लाख हेक्टेयर) था।
आपको बता दें कि भारत का अरहर दाल का आयात 2024-25 के दौरान पिछले वर्ष के 7.71 लाख टन की तुलना में 12.23 लाख टन के उच्च स्तर को छू गया।
ये देखें –
पूजा राय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से पढ़ाई की है।
Lallantop में Internship करने के बाद NewsPotli के लिए कृषि और ग्रामीण भारत से जुड़ी खबरें लिखती हैं।