सिंचाई में हर साल इस्तेमाल हो रहा सात ट्रिलियन क्यूबिक मीटर पानी: रिसर्च

ट्वेंट यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च में ये पता चला है कि दुनिया में मुख्य फसलों को उगाने के लिए पानी की खपत में एतिहासिक बदलाव हुआ है।

क्या आप जानते हैं दुनिया भर में फसल उगाने के लिए हर साल करीब सात ट्रिलियन क्यूबिक मीटर का पानी का इस्तेमाल होता है। ट्वेंट यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च में ये पता चला है कि दुनिया में मुख्य फसलों को उगाने के लिए पानी की खपत में एतिहासिक बदलाव हुआ है। फसलों को उगाने के लिए पानी की खपत लगातार बढ़ रही है, जिसे ड्रिप इरिगेशन या दूसरी सिंचाई के तरीको को अपनाकर कम नहीं किया गया तो आने वाले दशकों में पर्यवारण और सामाजिक-आरर्थिक समस्याओं की बढ़ोत्तरी हो सकती है।

स्टडी में 1990-2019 के दौरान 175 फसलों को उनके हरे और नीले पानी की पहचान के आधार पर इसकी पड़ताल की है। हरा पानी यानी बारिश से आने वाला पानी है और नीला पानी सिंचाई और उथले भूजल से आता है। रिसर्चर का कहना है कि, हमें इन दो तरह के पानी के प्रकारों के बीच फर्क करने की जरूरत है, क्योंकि वो पारिस्थितिकी तंत्र और समाज में अलग-अलग भूमिका निभाते हैं।

रिसर्च में ये पाया गया कि करीब 80 फीसदी फसलों को 1990 की तुलना में 2019 में प्रति टन कम पानी की जरूरत पड़ी। हालांकि इस तरह की उत्पादकता के फायदे फसल उत्पादन के वैश्विक कुल पानी पदचिह्न को बढ़ने से रोकने के लिए नाकाफी थे। 1990 के बाद से, उत्तरार्द्ध में लगभग 30 फीसदी या 1.55 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर की बढ़त्तरी हुई है। रिसर्च में अनुमान लगाया गया है कि साल 2019 के लिए मुख्य रूप से हरे पानी का 6.8 ट्रिलियन क्यूबिक मीटर है, जो प्रति व्यक्ति हर दिन की खपत लगभग 2,400 लीटर है।

पानी की खपत बढ़ने की वजह

ट्वेंट के रिसर्च में पाया गया कि पानी के कुल वृद्धि का लगभग 90 फीसदी 2000 से 2019 के बीच हुआ, जिसे शोधकर्ता तीन मुख्य सामाजिक-आर्थिक कारकों से जोड़ते हैं। सबसे पहले, तेजी होता वैश्वीकरण और आर्थिक विकास ने अलग-अलग आयातित फसलों और फसल उत्पादों की खपत में काफी वृद्धि की। दूसरा वैश्विक आहार अधिक पानी-गहन उत्पादों जैसे पशु उत्पाद, मीठे पेय और शर्करा और वसायुक्त खाद्य पदार्थों की ओर स्थानांतरित हो गया। तीसरा कई सरकारों के ऊर्जा सुरक्षा और ग्रीन एजेंडे ने फसल-आधारित जैव ईंधन के उत्पादन को बढ़ावा दिया।

किस देश में पानी का ज्यादा इस्तेमाल?

रिसर्च के मुताबिक, भारत, चीन और अमेरिका सबसे बड़े पानी के उपभोक्ता हैं। हालांकि कुल जल पदचिह्न वृद्धि ज्यादातर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में हुई, जो अक्सर जगलों के काटे जाने और जैव विविधता के नुकसान समेत दूसरे पर्यावरणीय प्रभावों के साथ सामने आती है। ये स्टडी एनवायरनमेंटल रिसर्च लेटर्स मैगज़ीन में प्रकाशित की गई है।

शोधकर्ता शोध के हवाले से बताते है कि यह क्षेत्र फसल उत्पादन के लिए ज्यादा भौगोलिक परिस्थितियां प्रदान करता है जबकि अनुकूल कृषि नीतियां बड़े कृषि खाद्य निगमों से निवेश आकर्षित करती हैं। इसकी वजह से कुछ क्षेत्र ज्यादा पानी का इस्तेमाल करने वाली फसलों की एक छोटी सी श्रेणी में तेजी से विशेषज्ञ बन गए, जैसे इंडोनेशिया में तेल ताड़ के फल या ब्राजील में सोयाबीन और गन्ना।

भविष्य में क्या होगा?

रिसर्चर के हवाले से कहा गया है कि, आंकड़े बताते है कि आने वाले दशकों में लोग फसल उत्पादन के लिए पानी की खपत को बढ़ाते रहेंगे। ज्यादा फसलें पैदा होंगी, जिससे दुनिया भर में सीमित हरे और नीले जल संसाधनों पर अधिक दबाव पड़ेगा। हालांकि ये एक अधिक आशावादी परिदृश्य हो सकता है। रिसर्चर ने सुझाव दिया है कि, फसलों को उगाने में पानी का इस्तेमाल बढ़ाने, उत्पादन को कम पानी की कमी वाले क्षेत्रों में ट्रांसफर करने, कम पानी की खपत वाली खेती को व्यापक रूप से अपनाने और पहली पीढ़ी के जैव ईंधन की आवश्यकता को कम करने में बहुत संभावनाएं हैं। रिसर्च में इस बात पर जोर दिया गया है कि सिंचाई के लिए इस तरह के टेक्निक अपनाई जाए जिससे पानी की बचत हो सके।

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