दिनभर की खेती किसानी से जुड़ी खबरों की न्यूज पोटली में आपका स्वागत है। चलिए देखते हैं आज की पोटली में किसानों के लिए क्या क्या नया है।
1.चना के दाम में पिछले करीब एक महीने में लगभग 15 फीसदी तक उछाल देखने को मिल रहा है। जबकि मंडियों में चना की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य से 30-35 फीसदी अधिक चल रही हैं।यहाँ तक कि सरकार ने चना से आयात शुल्क को भी हटा दिया है।
चना की लगातार बढ़ती कीमतों को देखते हुए सरकार बड़ा निर्णय ले सकती है। सूत्रों की मानें तो सरकार चना स्टॉक होर्डिंग पर सीमा तय कर सकती है। ऐसा होने से चना की जमाखोरी रुकेगी और कीमतों में कुछ राहत मिलेगी।
व्यापार निकाय भारतीय दलहन एवं अनाज संघ (IPGA) के आंकड़ों से पता चलता है कि चने की कीमतें एक सप्ताह में लगभग 5 फीसदी और एक महीने में 10 फीसदी से अधिक की बढ़ी हैं।
केंद्र सरकार ने 7 मई को चने पर आयात शुल्क हटाए जाने के बाद मार्च में ऑस्ट्रेलिया से 58,000 टन चना आयात किया है। व्यापार अनुमानों के अनुसार आयात के बाद भी ग्राहकों को चने की ऊंची कीमतों से बहुत राहत मिलने की संभावना नहीं है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उपलब्धता कम है। इसके साथ ही मानसून के दौरान चने के बेसन की मांग को बढ़ने को भी वजह बताई जा रही है।
2.लगातार चल रहे भीषण गर्मी के कारण पोल्ट्री उत्पादन में कमी आई है जिसकी वजह से चिकन की क़ीमतों में 25% की बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है।
भीषण गर्मी, पानी की कमी और बढ़ते पक्षियों के मृत्यु दर के कारण दक्षिण और पूर्वी भारत में चिकन की क़ीमतों में 25% से अधिक की बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है।चिकन की क़ीमतों में उछाल की एक वजह देश में चल रहे चुनाव को भी माना जा रहा है। ऐसा देखा जाता है कि चुनावों के दौरान धन का प्रचलन बढ़ने की वजह से समर्थकों के बीच लगातार पार्टियाँ होती हैं जिसकी वजह से पोल्ट्री उत्पाद की माँग बढ़ती है, जिससे सभी क्षेत्रों में इसकी क़ीमत पर प्रभाव पड़ रहा है।
3.बासमती चावल का निर्यात मूल्य सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम निर्यात मूल्य(MEP) से नीचे आ गया है, जिसका असर वैश्विक खरीदारों और घरेलू कीमतों पर पड़ रहा है।
इकोनॉमिक टाइम्स के एक रिपोर्ट के अनुसार बासमती चावल का निर्यात मूल्य सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम निर्यात मूल्य(MEP) $950 प्रति टन से काफी नीचे गिरकर $800-$850 प्रति टन हो गया है।
निर्यात उठाव कम होने से घरेलू कीमतें भी 75 रुपये प्रति किलोग्राम से गिरकर 65 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गई हैं। बासमती चावल का निर्यात मूल्य सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम निर्यात मूल्य से नीचे आ गया है, जिसका असर वैश्विक खरीदारों और घरेलू कीमतों पर पड़ रहा है। MEP परिवर्तन, बासमती व्यापार प्रतिस्पर्धात्मकता और मूल्य दबाव पर चिंताएं पैदा होती हैं। मानसून और ला नीना के पूर्वानुमान बासमती उत्पादन को प्रभावित करते हैं, जबकि भारत के वर्षा पैटर्न और खपत के रुझान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पंजाब चावल निर्यातक संघ ने इस मामले को देखने के लिए कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद विकास प्राधिकरण (APEDA)को पत्र लिखा है ताकि निर्यातकों को एमईपी लगाए जाने से नुकसान न हो। APEDA बासमती निर्यात अनुबंधों का पंजीकरण जारी करने वाली नोडल एजेंसी है।
और अब किसानों से लिए सबसे उपयोगी मौसम की जानाकरी
4.Heat Wave Alert
मौसम विभाग के अनुसार 29 मई से 31 मई, 2024 तक केरल, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, उप-हिमालयी, पश्चिम बंगाल और सिक्किम में गरज, बिजली और तेज़ हवाओं (30-40 किमी प्रति घंटे) के साथ व्यापक रूप से हल्की से मध्यम वर्षा होने की संभावना है। मौसम विभाग के मुताबिक, 29 मई से 31 मई तक उत्तराखंड में गरज, बिजली और तेज हवाओं (30-40 किमी प्रति घंटे) के साथ छिटपुट हल्की वर्षा होने की संभावना है। 30 मई और 31 मई को जम्मू-कश्मीर-लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में बारिश की संभावना जताई जा रही है।
मई महीने के ताप ने देश का पसीना छुड़ाया दिया है और अब जून में अधिक तापमान रहने का अनुमान है।IMD के अनुसार दक्षिण भारत को छोड़कर पूरे देश का जून महीने का तापमान सामान्य से अधिक रहने का पूर्वानुमान है। वहीं मानसून की वजह से न्यूनतम तापमान भी देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक रहने का अनुमान है।
विभाग के अनुसार पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, यूपी, गुजरात और मध्य प्रदेश के लोगों को मई के महीने की तुलना में जून में अधिक लू का सामना करना पड़ सकता है। असल में जून के महीने 3 दिन लू चलने को सामान्य माना जाता है, लेकिन इस बार जून के महीने 6 दिन लू चलने का पूर्वानुमान IMD ने जारी किया है।
और आखिर में न्यूज पोटली की ज्ञान पोटली
5.इस विधि से करें धान की बीज की जाँच
आने वाले महीनों में धान की बुवाई शुरू हो होगी ऐसे में किसान धान की बीज की ख़रीद में लग गये होंगे, मार्केट से आप सही बीज ला रहे हैं या नहीं ये जानना बहुत ज़रूरी हो जाता है क्योंकि मिट्टी की उर्वरकता, खाद, पानी के अलावा फसल की उत्पादकता बीज पर ही निर्भर करती है।
भारत में इसका महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि फसलों की जरूरत के हिसाब से सबसे अच्छी जलवायु होने के बावजूद भी लगभग सभी फसलों का औसत उत्पादन विकसित देशों की तुलना में कम है।
पूरे देश के बाजारों में नकली बीज धड़ल्ले से बिक रहा है। इसलिए किसानों को बीज और खाद खरीदते समय अधिकतम सावधानी बरतनी चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि अच्छे उत्पादन के लिए किसान को बुवाई से पहले बीज अंकुरण जांच जरूर करानी चाहिए। जांच में अगर 80 से 90 फीसदी बीज अंकुरित होते हैं तो बीज को बेहतर माना जाता है। 60-70 फीसदी अंकुरण होने पर बीज दर बढ़ाई जा सकती है। उस बीज का बिलकुल भी इस्तेमाल ना करें जो 60 फीसदी से कम अंकुरित हो।
किसान बीज प्रमाणीकरण प्रयोगशाला में बीज की अंकुरण क्षमता की जांच निशुल्क करा सकता है। प्रयोगशाला में नमूना जमा कराने के एक सप्ताह बाद किसान को रिपोर्ट सौंप दी जाती है, जिसमें किसानों को उपज की अंकुरण क्षमता और गुणवत्ता की अधिकृत रिपोर्ट दी जाती है।
खेती किसानी की रोचक जानकारी और जरुरी मुद्दों, नई तकनीक, नई मशीनों की जानकारी के लिए देखते रहिए न्यूज पोटली।