जलवायु परिवर्तन धीरे-धीरे विकराल रूप लेता जा रहा है। साल 2024 अब तक सबसे गर्म साल रहा है। दुनिया के कैलेंडर में 2024 ऐसा साल रहा, जिसे औसत वैश्विक तापमान के इतिहास में सबसे गर्म साल घोषित किया गया है। जलवायु पर काम करने वाली एजेंसी कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के मुताबिक 2024 में पूरी दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो गया। ये तापमान का वही बॉर्डर लाइन है जिसे दुनिया भर के वैज्ञानिक कम करने में लगे हैं। 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान जलवायु परिवर्तन के गहराते प्रभावों की चेतावनी देती है। एजेंसी के मुताबिक, 2024 में जनवरी से जून तक का हर माह अब तक का सबसे गर्म माह रहा। जुलाई से दिसंबर तक, अगस्त को छोड़कर हर माह 2023 के बाद रिकॉर्ड स्तर पर दूसरा सबसे गर्म माह रहा। वैज्ञानिकों ने पाया कि 2024 में औसत वैश्विक तापमान 15.1 डिग्री सेल्सियस रहा। ये 1991-2020 के औसत से 0.72 डिग्री अधिक और 2023 से 0.12 डिग्री ज्यादा था।
कोपरनिकस की रिपोर्ट के मुताबिक 2024 में जरूरत से ज्यादा गर्मी, बाढ़, सूखा और जंगल में आग की घटनाएं बढ़ीं हैं। उदाहरण के लिए, कनाडा और बोलीविया में जंगल की आग ने रिकॉर्ड तोड़ दिया। वहीं, उच्च तापमान और आर्द्रता ने गंभीर स्तर की गर्मी की स्थिति को बढ़ावा दिया। रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 2024 में वैश्विक स्तर पर 44 फीसदी क्षेत्र गंभीर से अत्यधिक गर्मी तनाव वाली स्थिति में रहा।
1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान का मतलब क्या है?
वैश्विक तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस के पार करने का मतलब है कि दुनिया एक नई जलवायु सच्चाई में प्रवेश कर रही है, जहां जरूरत से ज्यादा गर्मी, विनाशकारी बाढ़ और प्रचंड तूफान लगातार और गंभीर होते जाएंगे। इन्हीं खतरों को देखत हुए साल 2015 में पैरिस में एक समझौता हुआ था, जिसके मुताबिक वैश्विक तापमान 2℃ से नीचे रखने और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया था।
वैज्ञानिकों की स्पष्ट चेतावनी
कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के निदेशक कार्लो बुएंटेम्पो ने कहा कि, 2024 ने ये साफ कर दिया है कि मानवता अपने भविष्य को नियंत्रित कर सकती है, लेकिन इसके लिए जलवायु संकट से निपटने के लिए त्वरित और निर्णायक कदम उठाने की जरूरत है।