बिहार के कृषि मंत्री मंगल पांडेय 31 जुलाई को मीडिया से बात करते हुए कहा कि बिहार को फलों,सब्जियों और आलू के लिए राष्ट्रीय मानचित्र पर पहचाना जाता है , लेकिन इसके 38 में से 12 जिलों में अभी भी इन कृषि उत्पादों को संरक्षित करने के लिए आवश्यक कोल्ड स्टोरेज और कोल्ड चेन सुविधाओं का अभाव है।
बिहार कृषि प्रधान राज्यों में शामिल है। लेकिन, प्रदेश के 12 जिलों में शीत गृह( कोल्ड स्टोरेज) की व्यवस्था ही नहीं है। कई ऐसे जिले हैं,जहां पहले तो कोल्ड स्टोरेज था,अब बंद हो गए। नतीजतन, किसानों के उत्पाद बर्बाद होते हैं। किसानों के कच्चे फसल जैसे सब्जी,आलू आदि का नुकसान होता है।
12 जिलों में नवादा, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, जमुई, मुंगेर, बांका, लखीसराय, शेखपुरा, मधुबनी, सहरसा और शिवहर शामिल हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि इन 12 जिलों के किसान अपने फसल को कैसे सुरक्षित रखते थे? कोसी नदी से सटे सहरसा मधुबनी और शिवहर जिला मुख्य रूप से कृषि और प्रवासी मजदूरी पर आधारित है। यहां के किसानों से हमने बात की है।
सहरसा के बनगांव के रहने वाले नंदन खां बताते हैं कि, “मेरा परिवार लगभग 4 बीघा खेत में आलू की खेती करता है। हमारी कोशिश रहती हैं की अधिक से अधिक आलू उपज होने के बाद बेच दी जाए। बाकी आलू को पड़ोसी जिला सुपौल के बिरपुर स्थित कोल्ड स्टोरेज में जमा करना होता है। यहां से बिरपुर लगभग 85-90 किलोमीटर होगा। अगर हमारे पड़ोस में काल्ड स्टोरेज बन जाए तो हमें ज्यादा से ज्यादा लाभ होगा।”
मधुबनी के भी कई आलू किसान पड़ोसी जिला दरभंगा स्थित कोल्ड स्टोरेज में अपनी सब्जी रखते हैं। बिहार में 38 जिला है। बांकि 25 जिलों में 202 कोल्ड स्टोरेज हैं, जिनकी संयुक्त क्षमता 12.30 लाख मीट्रिक टन (एमटी) है।
सहरसा स्थित महिषी गांव के सब्जी किसान नितिन ठाकुर बताते हैं कि, “तटबंध नजदीक में होने की वजह से यहां सब्जी की खेती बेहतर होती है। यहां सब्जी का उत्पादन इतना अधिक होता है कि दूसरे जिले के लोग भी यहां से सब्जी ले जाते है,लेकिन जिले में कहीं भी कोल्डस्टोरेज नहीं होने के कारण उन्हें औने-पौने दामों में बिचौलियों के हाथो सब्जियों को बेचने को मजबूर होना पड़ता है।
बिहार कृषि विभाग में काम कर चुके अरुण कुमार झा बताते हैं कि, “चावल और गेहूं को अधिकांश किसान अपने घर में कोठी बनाकर सुरक्षित रख लेते है। सबसे ज्यादा नुकसान बागवानी फसलों के किसानों को होता है। अधिकांश कोल्ड स्टोरेज निजी है। पंचायत स्तर पर कोल्ड स्टोर और वेयरहाउस बनेंगे तब जाकर किसानों को फायदा मिलेगा।”बिहार कृषि विभाग में काम कर चुके अरुण कुमार झा बताते हैं कि, “चावल और गेहूं को अधिकांश किसान अपने घर में कोठी बनाकर सुरक्षित रख लेते है। सबसे ज्यादा नुकसान बागवानी फसलों के किसानों को होता है। अधिकांश कोल्ड स्टोरेज निजी है। पंचायत स्तर पर कोल्ड स्टोर और वेयरहाउस बनेंगे तब जाकर किसानों को फायदा मिलेगा।”